Saturday 25 February 2017

पितृ दोष और देव दोष के जिम्मेदार ज्योतिष्य योग

>पितृ दोष क लिए जिम्मेदार ज्योतिषीय योग:
1. लग्नेश की अष्टम स्थान में स्थिति अथवा अष्टमेष की लग्न में स्थिति।
2. पंचमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की पंचम में स्थिति।
3. नवमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की नवम में स्थिति।
4. तृतीयेश, यतुर्थेश या दशमेश की उपरोक्त स्थितियां। तृतीयेश व अष्टमेश का संबंध होने पर छोटे भाई बहनों, चतुर्थ के संबंध से माता, एकादश के संबंध से बड़े भाई, दशमेश के संबंध से पिता के कारण पितृ दोष की उत्पत्ति होती है।
5. सूर्य मंगल व शनि पांचवे भाव में स्थित हो या गुरु-राहु बारहवें भाव में स्थित हो।
6. राहु केतु की पंचम, नवम अथवा दशम भाव में स्थिति या इनसे संबंधित होना।
7. राहु या केतु की सूर्य से युति या दृष्टि संबंध (पिता के परिवार की ओर से दोष)।
8. राहु या केतु का चन्द्रमा के साथ युति या दृष्टि द्वारा संबंध (माता की ओर से दोष)। चंद्र राहु पुत्र की आयु के लिए हानिकारक।
9. राहु या केतु की बृहस्पति के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध (दादा अथवा गुरु की ओर से दोष)।
10. मंगल के साथ राहु या केतु की युति या दृष्टि संबंध (भाई की ओर से दोष)।
11. वृश्चिक लग्न या वृश्चिक राशि में जन्म भी एक कारण होता है, क्योंकि वह राशि चक्र के अष्टम स्थान से संबंधित है।
12. शनि-राहु चतुर्थी या पंचम भाव में हो तो मातृ दोष होता है। मंगल राहु चतुर्थ स्थान में हो तो मामा का दोष होता है।
13. यदि राहु शुक्र की युति हो तो जातक ब्राहमण का अपमान करने से पीड़ित होता है। मोटे तौर पर राहु सूर्य पिता का दोष, राहु चंद्र माता ��ा दोष, राहु बृहस्पति दादा का दोष, राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।
14. इन दोषों के निराकारण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।

                      देवता दोष क्या?

देव दोष ऐसे दोषों को कहते हैं जो पिछले पूर्वजों, बुजुर्गो से चलें आ रहे हैं, जिसका देवताओं से संबंध होता है। गुरु और पुरोहित तथा ब्राहमण विद्वान पुरुषों को इनके पिछले पूर्वज मानते चले आते थे। इन्होंने उनको मानना छोड़ दिया अथवा वह पीपल जिस पर यह रहते थे, को काट दिया तो उससे देव दोष पैदा होता है। इसका असर औलाद तथा कारोबार पर विपरीत होता है। इसका संबंध बृहस्पति तथा सूर्य से होता है। बृहस्पति नीच सूर्य भी नीच या दो बुरे ग्रहों के घरे में हो तो यह दोष उत्पन्न होता है।

अपने समय के अनुरूप इस जातक के भाई ने कोई रूहानी गुरु धारण कर लिया और उस गुरु के कहने पर देवी देवता पुरोहित की पूजा छोड़ दी, जिससे कारोबार में अत्यधिक हानि होती गई। रुकती नहीं। पहले इनके पूर्वज बुजुर्गादि, देवी देवता व शहीदों मृतकों को मानते थे। परन्तु इन्होंने उनको मानना पूजा आदि छोड़ दी इस कारण ऐसा हुआ। दोबारा पूजा शुरू करने पर सब ठीक है।
मगर विशेष करके अगर आप पूजा करने मे समर्थ नही है तो  गयाजी आकर उन पितर को सदा के लिए स्थान देकर बैठा दीजिए जिससे आप बारबार आ रहे परेशानीयो से सदा मुक्त हो जायेगे

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