Sunday 23 April 2017

श्राद्ध या पिन्डदान सम्बन्धी विशेष बाते याद रखे

श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। उसे श्राद्ध  कहते है धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।
   
🌺श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
🌸श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-

🖼1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

🌈2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

🖼3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

🌈4- ब्राह्मण को भोजन 'मौन रहकर' एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें !

🖼5- जो पितृ , शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पहने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।
 
🌈6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

🖼7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।

🌈8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है। क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है।

🖼9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

🌈10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भाऩजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

🖼11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याच़क को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

🌈12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

🖼13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

🌈14- जैसे कि रात्रि को राक्षसी समय माना गया है, रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।वैसे हि दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

🖼15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

🌈16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

🖼17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

🌈18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

🖼19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य,
2- नैमित्तिक,
3- काम्य,
4- वृद्धि,
5- सपिण्डन,
6- पार्वण,
7- गोष्ठी,
8- शुद्धर्थ,
9- कर्मांग,
10- दैविक,
11- यात्रार्थ,
12- पुष्टयर्थ

🌈20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-
➖तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
➖भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।
वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
➖दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

🖼21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

🌈22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

🖼23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

🌈24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

🖼25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

🌈26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों( एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है

🖼पितृ पक्ष पन्द्रह दिन की समयावधि होती है जिसमें हिन्दू जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं।

🌈दक्षिणी भारतीय अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद के चन्द्र मास में पड़ता है और पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के एक दिन बाद प्रारम्भ होता है।
🖼उत्तरी भारतीय पूर्णीमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन के चन्द्र मास में पड़ता है और भाद्रपद में पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के अगले दिन प्रारम्भ होता है।

गया जी मे पितृ दोष परिहार के लिए  सम्पर्क  करे
✍  गया जी पन्डित
आचार्य प्रवीण पाठक  9661441389.  9905567875

Thursday 20 April 2017

मातृ दोष और श्राप के कारण संतान हीनता और ज्योतिष्य योग उपाय


मातृ श्राप में जातक द्वारा माता की आत्मा दुखाने,उसे विभिन्न प्रकार से कष्ट देने से माँ की बद्दुआ श्राप बनकर जातक को संतान हींन बना देती है,जिनको ग्रहो के प्रभाव के माध्यम से ज्योतिषीय सूत्रो में दर्शाया गया है जो निम्नलिखित है। इस दोष के परिहार के लिए गया जी मे पिन्डदान अवश्य करें। विशेष करके गया जी मे सीता कुन्ड नाम का तीर्थ स्थल है वहा सौभाग्य दान तथा पिन्डदान करके  मातृ दोष तथा उनके श्राप से मुक्ति पायें

१👉 यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में छठे,आठवे,भाव के स्वामी लग्न में चतुर्थेश(सुखेश) एव चन्द्रमा बारहवे भाव में हो तथा गुरु पाप ग्रहो से युत होकर पंचम भाव में हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

२👉 यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में लग्न पापी ग्रहो के मध्यस्त में हो तथा क्षीण(अस्त व् नीच) चन्द्रमा सप्तम भाव में हो वे चतुर्थ,पंचम भाव में शनि राहु होतो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

३👉 यदि अष्टमेश पंचम भाव में हो और पंचमेश अष्टम भाव में हो अर्थात दोनों परस्पर राशि परिवर्तन कर के बैठे हों तथा चंद्रमा व् चतुर्थेश छठे ,आठवे,या बारहवे भाव में हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

४👉 यदि लग्न में कर्क राशि हॉनर मंगल-राहु से युत हो तो भी माता के श्राप से संतान हानि होती है।

५👉 यदि जातक की कुण्डली में लग्न,पंचम,अष्टम,द्वादश भाव में मंगल,राहु,सूर्य,व् शनि हो तथा चतुर्थेश चतुर्थ अथवा अष्टम भाव हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

६👉 यदि किसी जातक की जन्म पत्री में गुरु, मंगल या राहु या दोनों से युत हो और पंचम भाव में शनि,चंद्र हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

७👉 यदि जातक की कुण्डली में पंचमेश चंद्र अपनी नीच राशि में या पापी ग्रहो के मध्य हो और चतुर्थ पंचम भाव में पापी ग्रह हो तो भी माता के श्राप से संतान हानि होती है।

८👉 यदि जातक की जन्म कुण्डली में ग्यारहवे भाव में शनि हो और चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा अपनी नीच राशि में चन्द्रमा पंचम भाव में हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है ।

९👉 यदि कुण्डली में पंचमेश छठे,आठवे या बारहवे भाव में हो,लग्नेश अपनी नीच राशि में हो और चंद्रमा पापी ग्रहो से युत हो तो भी माता के श्राप से संतान हानि होती है ।

१०👉 यदि जातक की कुण्डली में पंचमेश छठे,आठवे या बारहवे भाव में हो तथा चन्द्रमा पापांश में हो लग्न एवं पंचम भाव में पापी ग्रह हो तो माता के श्राप से संतान की हानि होती है।

११👉 जातक की कुण्डली में यदि पंचमेश चंद्र शनि,राहु,मंगल से युत हो और कारक ग्रह गुरु नवम भाव या पंचम भाव में हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

१२👉 यदि कुण्डली में चतुर्थेश मंगल,शनि राहु से युत हो और पंचम भाव एवं लग्न सूर्य चंद्र से युत हो तो भी माता के श्राप से संतान हानि होती है।

१३👉 लग्नेश,पंचमेश छठे भाव में हो तथा चतुर्थेश अष्टम भाव में हो अष्टमेश एवं दशमेश लग्न में हो तो जातक की संतान हानि माता के श्राप से होती है ।

१४👉 यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में वृश्चिक लग्न में शनि हो और चतुर्थ भाव में पापी ग्रह बैठे हों पंचम भाव में चंद्र हो तो जातक की माता के श्राप से संतान हानि होती है ।
१५👉 यदि कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल होकर राहु शनि से युत हो और लग्न में सूर्य एवं चन्द्रमा हो तो भी जातक की संतान हानि माता के श्राप से होती है।

१५👉 यदि किसी जातक की कुण्डली में चतुर्थेश अष्टम भाव में हो और छठे भाव में लग्नेश-पंचमेश युति करके बैठे हो तो ऐसे व्यक्ति की संतान हानि माता के श्राप से होती है।

१६👉 यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव में हो तथा चन्द्रमा चतुर्थेश से युति करके छाते भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति की संतान हानि माता के श्राप से होती है।

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पितृदोष श्राप से सन्तान हीनता और ज्योतिष्य उपाय


जातक के द्वारा पूर्व जन्म में पिता को या पिता तुल्य व्यक्ति को दारुण कष्ट देने से यह श्राप जन्म पत्री में प्रकट होता है। इसे हम आपको ज्योतिष सूत्रो के माध्यम से समझा रहे है। अगर इस प्रकार के दोष अगर आप के जन्म कुन्डली मे निर्माण होता है तो गया जी मे
अपने पितर के निमित्त पिन्डदान अवश्य कराये जिससे पितर को मुक्ति मिलता है।   गया जी झोडकर अन्यत्र पिन्डदान कराने से तात्कालिक फल मिलता है

१👉 यदि किसी जातक की जन्म पत्री में पंचम भाव में सूर्य हो तथा क्रूर ग्रहो के मध्य (त्रिकोण) में पापी ग्रह बैठे हो अथवा पापी ग्रहो से देखे जाते हो तो पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

२👉 यदि जातक की कुण्डली में पंचम भाव में सूर्य अपनी नीच राशि में शनि के अंश में हो और उसके आगे तथा पीछे पापी ग्रह हो तो पिता के श्राप से संतान हानि होती है।

३👉 यदि जातक की जन्म कुण्डली में लग्नेश दुर्बल होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश सूर्य से युत हो तथा पंचम एवं लग्न में पापी ग्रह हो तो पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

४👉 यदि दशम भाव(पिता के स्थान) का स्वामी मंगल होकर पंचमेश से युत हो तथा लग्न,पंचम,दशम भाव में पापी गृह बैठे हो तो पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

५👉 यदि किसी जातक की कुण्डिली में दशमेश पंचम भाव में हो और पंचमेश दशम भाव में हो तथा लग्न और पंचम भाव में पापी ग्रह हो तो भी पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

६👉 यदि जन्म कुण्डली में सूर्य की राशि में गुरु हो और पंचमेश सूर्य से युत हो तथा पंचम और लग्न में पापी ग्रह हो जो जातक पितृ श्राप से संतान हीं होता है।

७👉 यदि जातक की कुण्डली में षष्ठेश दशमेष से युत होकर पंचम भाव में बैठा हो और करक ग्रह गुरु राहु से युत हो तो पिता के श्राप से संतान की हानि होती है

८👉 यदि पिता के स्थान का स्वामी (दशमेश) जातक की कुण्डली में छठे,आठवे,बारहवे भाव में हो या इन तीनो में से किसी भाव में हो तथा कारक ग्रह गुरु पापी ग्रहो की राशि में होतात पंचमेश और लग्नेश पापयुक्त हो तो पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

९👉 यदि जातक की कुण्डली में लग्न एवं पंचम भाव में सूर्य,मंगल,शनि हों और आठवे,बारहवे स्थान में राहु तथा गुरु हो व् लग्न में पापी ग्रह के होने से पिता के श्राप से संतान हानि होती है।

१०👉 यदि कुण्डली में द्वादशेश(बारहवे भाव के स्वामी) लग्न में हो और अष्टमेश पंचम भाव में हो तथा पिता के दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो भी पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

११👉 यदि सूर्य पंचम भाव में अपनी नीच राशि तुला का हो और मकर या कुम्भ के नवमांश में होकर पाप पीड़ित हो तो ऐसे व्यक्ति की संतान हानि पितृ श्राप से होती है।

१२👉 यदि सूर्य अष्टम भाव में हो तथा पंचम भाव में शनि हो और पंचमेश राहु से युत हो तो जातक को पितृ श्राप से संतान हानि होती है।

१३👉 यदि द्वादशेश लग्न में हो वे अष्टमेश पंचम भाव में हो अथवा सूर्य पंचम भाव में अपनी नीच राशि का होकर मकर या कुम्भ के नवमांश में पाप पीड़ित हो तो ऐसे जातक की संतान हानि पितृ श्राप से होती है।

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