Tuesday 31 January 2017

गया जी मे पिन्डदान करने से ही पित्रो की मुक्ति क्यो


     पदे पदे अश्वमेधस्य यत्फलं गच्छतो गयाम

श्रीबदरीनाथ जी को छोड कर  इस भूमि पर श्री गया तीर्थ के निमित्त शास्त्रो मे जितना प्रशंसा किया गया है शायद ही किसी और तीर्थ को गया जी के समान  प्रशंसा का सौभाग्य  प्राप्त हुआ हो  और इस गयाजी का नाम पहले ब्रम्हपुरी था जहा स्वयं ब्रम्हा जी सृष्टि के बाद  इस ब्रम्हपुरी का निर्माण किया और वास किया  उसी ब्रम्हपुरी मे गयासूर नामक राझस पैदा होकर कठोर तपस्या करके अपने आराध्य भगवान नारायण को प्रसऩ्न करके इस पुण्य भूमी को अपने नाम कर लिआ और ब्रम्हादि देवता से प्रारंभ कर सभी देवताओ तथा पितृ देवताओ को नारायण की आग्या से अपने उपर समाहित कर लिया और तो और धर्म शास्त्र से भी अलग नया विरूद्द शास्त्र को भगवान नारायण की आग्या बनाया जैसे

     गयायां सर्व कार्येषु पिन्डंदद्यात विचछणः
    अधिमासे जन्मदिने चास्तेपि गुरूशुक्रयोः
    न त्यक्तं गयाश्राद्दं सिहंस्थेपि बृहस्पतौ

गयातीर्थ मे सभी समय मे श्राद्द किया जाता है अधिक मास हो गुरू शुक्र अस्त हो जन्म दिन हो आदि सभी समय पिन्डदान किया जाता है यह नियम केवल गया तीर्थ के निमित्त बना है अन्य तीर्थो पर आप यह नियम नही लागू कर सकते।

और यह गया तीर्थ भूमि के मध्य रेखा मे स्थित होने से यहा पर सूर्यास्त के बाद ४घटीतक अर्थात डेढ घंटा तक श्राद्ध किया जा सकता है 
और गरूड पुराण मे वचन है

     दिवा च सर्वदा रात्रौ गयायां श्राद्ध कृतभवेत

मात्र गया जी मे पिंडदान करने के लिए दिन या रात का विचार नही करना चाहिए जब आप को इच्छा हो तब आप तुरन्त पित्रो के उद्धार निमित्त पिन्डदान करे

गयातीर्थ साडे बारह किलो मीटर तक गयासूर राझस के शरीर परस्थिर है और देवतीर्थ तथा पितृतिर्थ के नाम से सारे विश्व मे प्रसिद्द है गयातीर्थ (गया जी) एक एसा तीर्थ है जहाँ आपको देव तथा पितर दोनो का समागम मिलेगा बाकी कही नही मिलेगा यहा पर विश्व से लोग अपने पितर के उद्दार के लिए आते है पितृ रूण से मुक्त होने के लिए आते है
इस लिए हर हिन्दू धर्म  मानने वाले को जीवन मे एक बार भी गया जी आकर पिन्डदान करना ही पडता है

और आगे इसी के बारे अगले पेज पर
Praveen Pathak  Gaya ji
9661441389
9905567875

Monday 30 January 2017

अमावास्या के दिन ही पिन्डदान क्यो

‬अमावास्या के दिन पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है
मृत्यु के पश्चात आत्मा की तीन स्थितियां बताई गई हैं. पहला अधोगति यानी भूत-प्रेत, पिशाच आदि योनि में जन्म लेना. दूसरा स्वर्ग प्राप्ति और तीसरा मोक्ष. गरुण पुराण में उल्लेख है कि इसके अलावा भी जीव को एक ऐसी गति भी मिलती है, जिसमें उसे भटकना पड़ता है. इसे प्रतीक्षा काल कहा जाता है. इन्हीं भटकी हुई आत्माओं की मुक्ति के लिए पितरों का तर्पण किया जाता है. श्रद्धावान होकर पुरखों की अधोगति से मुक्ति के लिए किया गया धार्मिक कृत्य श्राद्ध कहलाता है. पितरों के मोक्ष के लिए ही राजा भगीरथ ने कठोर तप किया और गंगा जी को पृथ्वी में लाकर उनको मुक्ति दिलाई.
बारह आदित्य (अदिति के पुत्र) दत्त, मित्र, आर्यमा, रुद्र, वरुण, सूर्य, भाग, विश्वन्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु हैं। ग्यारह रुद्र मन्यु, मनु, महिनसन, मदन, शिवन, ऋतुध्वज, उग्ररेतस, भवन, कामन, वामदेव और द्रुतव्रतन हैं। दक्ष की पुत्री वसु के ये आठ पुत्र हैं : धरण, ध्रुव, सोम, अहास, अनिल, अनलन, प्रात्युष्ण और प्रभासन।
इनमे से आर्यमा को पितृ मान कर आहुति दे जाती है और माना जाता है इससे पित्रों को तृप्ति व मुक्ति मिलती है।
विशेष करके गया जी जाकर पित्रो के निमित्त पिन्डदान कराये यह पित्रो के लिए मोछ के समान फलदायी है
इससे उत्तम कार्य दुनिया मे दूसरा नही
वैसे यह मानसिक जप व हवन होता है  किन्तु काले तिल,अक्षत व अन्य हवन सामग्री से हवन कर 108 आहुती दी जा सकती है ।पीपल के वृक्ष को  जल चढाये तथा “ ॐ श्री पित्रदेवाय नमः “ का जप करें ।
* सबसे पहले भूलकर भी किसी का अपमान ना करें (वैसे करना भी नहीं चाहिए), ब्रहमचर्य का पालन करे,  इर्ष्या ,क्रोध और बुरे विचार मन में नहीं आने चाहिये।
* पित्र देवो के आशीर्वाद के लिए सबसे अच्छा श्री गीता जी का पाठ होता है, और गया जी जाकर अपने पितर के निमित्त पिन्डदान करने से होता है  किसी योग्य ब्राहमण-पंडित से करवाया जाए। पाठ या पिन्डदान ये कह कर रखवाया जाता है, कि " हमारे पित्र देव जहा कही भी हो और जिस भी योनी में हो… उन्हें वहा पर शांति प्रदान हो और उनका आशीर्वाद हमारे पूरे परिवार को मिले  गीता पाठ और पिन्डदान का जो भी पुण्य फल है वो हमारे पित्र देवो को मिले…. "
फिर अमावस्या को इस पाठ का हवन के साथ समापन होता है।  ब्राहमण देव जी को यथा शक्ति कपडे दिए जाते है… जो पित्र देवो के नाम से होते है…. यथा शक्ति भोजन और दक्षिणा के साथ उनको विदाई दी जाती है…. यह पाठ ३ दिन या ५ ।

Sunday 29 January 2017

पितृ दोष के लछण

महापितृ बाधा दोष के लछण

जिस तरह कई घटनाये हमे विचलित कर देती हैं और हमारे मन में भय समां जाता है और ऐसे में हम यक़ीन नहीं कर पाते कि आत्माओं का वजूद असल में है भी या नहीं. जिस तरह भिन्न-भिन्न चीजों के अलग-अलग संकेत होते है, ठीक उसी तरह हमारे पूर्वज या परिवार अकाल मृत्यु या किसी भी कारण से अकाल मृत्यु ग्रस्त हो जाने पर वह प्रेत योनि मे चले जाते है और बराबर हमारे साथ रह कर संकेत देते रहते है । प्रेत आत्माओं के मौजूद होने के भी कई संकेत होते है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर इन संकेतों में से अगर आपको कोई भी संकेत का अहसास हो तो सावधान हो जाएँ।

1. अजीबोगरीब आवाजे सुनाई देना: अगर आपको अजीबोगरीब जैसे कि किसी के चलने की, खुरचने की़, पायल की़, दरवाजा खटकाने की, कुछ गिरने की आदि आवाज़ें सुनाई दे, तो ये संकेत गलत हैं।

2. अचानक इत्र या परफ्यूम की खुशबू आना: घर में किसी ने भी इत्र, परफ्यूम या खूशबू जैसी कोई भी चीज नहीं लगाई हो और उसके बावजूद अचानक ऐसी ही खुशबू आये, तो हो सकता है कोई प्रेत आत्मा आपके पास से गुजरी हो।

3. परछायीं का दिखना: आपको घर में कभी अजीब सी परछायीं दिखाई दे, तो पहले इसकी पुष्टि कर ले की ये किसकी है। अन्यथा सावधान रहने की जरूरत है।

4. जब अचानक तेजी से बंद हो दरवाजा: घर में अगर कोई ऐसा कमरा है, जिसके दरवाजे को हलका सा पुश करने से वह तेजी से बंद हो जाता हो तो ये संकेत भी अच्छा नहीं है। हो सकता है वहां कोई अदृश्य शक्ति का वास हो।

5. दीवारों पर खुर्चन या धब्बे: अगर घर की दीवार पर आपको खुर्चन या धब्बे दिखाई दें, तो ये भी गलत संकेत हो सकते हैं।

6. अपने स्थान पर न मिलें चीजें: अगर आप चीजों को संभाल कर रखते हैं, लेकिन फिर भी वे चीजें अपने स्थान पर नहीं मिलती हैं। और ऐसा बार-बार हो रहा है, तो जरूर कोई गड़बड़ है।

7. कोई बिस्तर पर बैठा हो: अचानक से आपको कभी लगे कि आपके खाली बेड पर कोई बैठा या लेटा है। और अगले ही पल में वो गायब सा हो जाता है, तो हो जाए सावधान।

9661441389. 9905567875

8. कोई पीछा कर रहा हो: अगर आपको बार- बार महूसस हो रहा हो कि कोई ना कोई आपका पीछा कर रहा है, तो सर्तक हो जाए। ये कोई प्रेत आत्मा हो सकती है।

9. किसी चीज का अचानक गायब होना: कोई चीज अचानक गायब हो जाए और फिर से आंखों के सामने आ जाए। तो ऐसी चीजे संभाल कर रखें, क्योंकि हो सकता है ये चीजें किसी अदृश्य शक्ति की पसंदीदा हो गई हो।

10. रोने और सिसकियों की आवाजें: अचानक किसी के रोने की या सिसकियां लेने की आवाज आये, लेकिन देखने पर आवाज वाली जगह कोई नहीं हो, तो सावधान हो जाए।

11. जैसे किसी ने छुआ हो: अगर अचानक लगे कि आपको किसी ने छुआ है। तो कोई न कोई गड़बड़ है।

12. घर में कुत्ता-बिल्ली का व्यवहार अजीब लगे: अगर घर में मौजूद जानवर जैसे कुत्ता या बिल्ली अचानक से अजीब सा व्यवहार करने लगे या फिर अजीब-अजीब आवाज़ें निकालें, तो सावधान हो जाएँ।

13 रोग ग्रस्त हो जाना और ठीक न हो पाना . दवा काम नही करना   हाथ पैर हमेशा कापते रहना

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गया जी मे पिन्डदान करने का महत्व


श्राद्धारम्भे गयायां ध्यात्वा ध्यात्वादेवं गदाधरं ।
ताभ्यांचैव मनशाध्यात्वा ततः श्राद्धं समाचरेत॥

गयाजी तीर्थ पुरे भूमण्डल के अद्वितीय वैदिक तीर्थ है की जिसका नाम स्मरण से फल की प्राप्ति संभव है पुराणों में यहाँ तक कह दिया गया है की श्राद्ध घर पर करें या कोई तीर्थ में गयाजीतीर्थ का स्मरण न किया जाय और श्राद्ध किया जाय तो निष्फल बताया गया है ।

आगे वायुपुराण से जाने तो
गृह्नात् चरित मात्रेण गयायां गमणंप्रति
स्वर्गारोहण सोपानम पितृणां च पदे
पदे अश्वमेधस्य यत्फलं गच्छतो गयाम
तत्फलं भवेन्नूनं श्राद्ध पूर्ती नि संशयः

गयाजी तीर्थ की महिमा अगर गयाजी यात्रा का संकल्प लेते है तो आपके पित्र आमंत्रित हो जाते है और सारे पित्र गण कामना करने लगते है की कैसे भी मेरा श्राद्ध कर्ता गयाजीतीर्थ के भूमि से अपना पाद स्पर्श करे की जैसे जैसे पाद स्पर्श होगा तो हम उर्धगामी होकर स्वर्ग के ओर प्रस्थान करेगें
और हमारा मोक्ष प्राप्ति हो जायेगी और हमसब पित्र गण स्वर्ग के अधिकारी हो जायेगें तो हमारे कर्ता को हजारों अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होगा ।

पद्मपुराण में भगवान कहते है ।
गयायां विष्णुपादाब्जं वरंतिर्थश्च पित्रणां

मै गयाजीतीर्थ में विष्णुपद के रूप में महाँ पित्र स्थित हूँ और मेरा नाम वरह और गदापाणी  है साथ मै पितृ मोक्ष करने के लिए स्थित हूँ।

भगवान का ही एक वाणी -
पितृ प्रियंतेमापन्ने प्रियन्ते स्वर्गदेवताः

पित्र पूजा करने से देवलोक के सारे देवताओं को प्रसऩ्नता प्राप्त होती है।
क्योंकि जैसे (हिरण्य पात्रं मधोरोह पूर्णं ददाती)सोने के कटोरी में सहद भर दिया जाये तो स्वर्ण और सहद मिलकर एक दिव्य उर्जा प्रदान करती है ।
जैसे( इन्द्र सोमपिवतु क्षेमोस्तुनः)स्वयं भगवान इन्द्र जब प्रमानन्दसोमरस पाकर आनन्दित हो जाते है और सारे पाप को नष्ट कर देते है ठिक उसी तरह पित्र गण व देवगण गयाजीतीर्थ ऐसे स्थान पर अपने पुत्र,पौत्र,प्रपौत्र के द्वारा श्राद्ध अन्न जल प्राप्त कर पूर्ण तृप्त हो जाते हैँ तब प्रसन्न होकर अपने श्राद्ध कर्ता को आनन्द ही आनंद देते है जैसे

आयु पुत्रान्यशस्वर्गं कृति पूष्टिं वलंश्रीयं पशु सौख्यं धनं धान्यं प्राप्तन्यात पितृ पूजनात ।

आयु धन धान्य समृद्धि स्वर्ग जैसा आनन्द साथ आपके हर कामना का पूर्ति होने का आशिर्वाद प्रदान करते है

Wednesday 25 January 2017

गया जी मे पिन्डदान का महत्व

यह गयाधाम पितर के लिए मोक्ष गामी है
श्राद्धारम्भे गयायां ध्यात्वा ध्यात्वादेवं गदाधरं ।
ताभ्यांचैव मनशाध्यात्वा ततः श्राद्धं समाचरेत॥
गयाजी तीर्थ पुरे भूमण्डल के अद्वितीय वैदिक तीर्थ है की जिसका नाम स्मरण से फल की प्राप्ति संभव है पुराणों में यहाँ तक कह दिया गया है की श्राद्ध घर पर करें या कोई तीर्थ में गयाजीतीर्थ का स्मरण न किया जाय और श्राद्ध किया जाय तो निष्फल बताया गया है ।
आगे वायुपुराण से जाने तो
गृह्नात् चरित मात्रेण गयायां गमणंप्रति
स्वर्गारोहण सोपानम पितृणां च पदे
पदे अश्वमेधस्य यत्फलं गच्छतो गयाम
तत्फलं भवेन्नूनं श्राद्ध पूर्ती नि संशयः
गयाजी तीर्थ की महिमा अगर गयाजी यात्रा का संकल्प लेते है तो आपके पित्र आमंत्रित हो जाते है और सारे पित्र गण कामना करने लगते है की कैसे भी मेरा श्राद्ध कर्ता गयाजीतीर्थ के भूमि से अपना पाद स्पर्श करे की जैसे जैसे पाद स्पर्श होगा तो हम उर्धगामी होकर स्वर्ग के ओर प्रस्थान करेगें
और हमारा मोक्ष प्राप्ति हो जायेगी और हमसब पित्र गण स्वर्ग के अधिकारी हो जायेगें तो हमारे कर्ता को हजारों अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होगा ।
पद्मपुराण में भगवान कहते है ।
गयायां विष्णुपादाब्जं वरंतिर्थश्च पित्रणां
मै गयाजीतीर्थ में विष्णुपद के रूप में महाँ पित्र स्थित हूँ और मेरा नाम वरह और गदापाणी  है साथ मै पितृ मोक्ष करने के लिए स्थित हूँ।
भगवान का ही एक वाणी -
पितृ प्रियंतेमापन्ने प्रियन्ते स्वर्गदेवताः
पित्र पूजा करने से देवलोक के सारे देवताओं को प्रसऩ्नता प्राप्त होती है।
क्योंकि जैसे (हिरण्य पात्रं मधोरोह पूर्णं ददाती)सोने के कटोरी में सहद भर दिया जाये तो स्वर्ण और सहद मिलकर एक दिव्य उर्जा प्रदान करती है ।
जैसे( इन्द्र सोमपिवतु क्षेमोस्तुनः)स्वयं भगवान इन्द्र जब प्रमानन्दसोमरस पाकर आनन्दित हो जाते है और सारे पाप को नष्ट कर देते है ठिक उसी तरह पित्र गण व देवगण गयाजीतीर्थ ऐसे स्थान पर अपने पुत्र,पौत्र,प्रपौत्र के द्वारा श्राद्ध अन्न जल प्राप्त कर पूर्ण तृप्त हो जाते हैँ तब प्रसन्न होकर अपने श्राद्ध कर्ता को आनन्द ही आनंद देते है जैसे
आयु पुत्रान्यशस्वर्गं कृति पूष्टिं वलंश्रीयं पशु सौख्यं धनं धान्यं प्राप्तन्यात पितृ पूजनात ।
आयु धन धान्य समृद्धि स्वर्ग जैसा आनन्द साथ आपके हर कामना का पूर्ति होने का आशिर्वाद प्रदान करते है



मार्कण्डेय पुराण में वर्णित ‘पितृस्तोत्र’ पाठ करने-कराने से पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं।

श्राद्ध पर ब्राह्मणों के भोजन के समय मार्कण्डेय पुराण में वर्णित ‘पितृस्तोत्र’ पाठ करने-कराने से पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं।                                                          पितृस्तोत्र।।रूचिरूवाच।।अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।हिन्दी में रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। मन्त्र:ॐ पितृ गणाय विद्महे, जगत धारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयातॐ क्रीं क्लीं ऎं सर्वपितृ्भ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट !!ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ !!ॐ ऎं पितृ्दोष शमनं हीं ॐ स्वधा !!सर्वपितृमोक्ष अमावस्या- किसी कारण से पितृपक्ष की सभी तिथियों पर पितरों का श्राद्ध चूक जाएं या पितरों की तिथि याद न हो तब इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।गया जी पण्डित आचार्य प्रवीण पाठक9661441389.  9905567875

Wednesday 18 January 2017

🌺श्रीसरस्वती सहस्रनाम स्तोत्रम्🌺*

🌺श्रीसरस्वती सहस्रनाम स्तोत्रम्🌺*
*ध्यानम्*
_श्रीमच्चन्दनचर्चितोज्ज्वलवपुःशुक्लाम्बरामल्लिका_
_मालालालितकुन्तला प्रविल सन्मुक्तावली शोभना।_
_सर्वज्ञान निधान पुस्तकधरा रुद्राक्षमालाङ्किता_
_वाग्देवी वदनाम्बुजा वसतु मे त्रैलोक्यमाता शुभा॥१॥_
*श्री नारद उवाच*
_भगवन् परमेशान सर्वलोकैक नायक।_
_कथं सरस्वती साक्षात्प्रसन्ना परमेष्ठिनः॥२॥_
_कथं देव्या महावाण्या सतत्प्राप सुदुर्लभम्।_
_एतन्मे वद तत्वेन महायोगीश्वर प्रभो॥३॥_
*श्रीसनत्कुमार उवाच*
_साधु पृष्ठं त्वया ब्रह्मन् गुह्याद्गुह्यं अनुत्तमम्।_
_मयानुगोपितं यत्नात् इदानीं तत्प्रकाश्यते॥४॥_
_पूरा पितामहं दृष्ट्वा जगत्स्थावर जङ्गमम्।_
_निर्विकारं निराभासं स्तभी भूतं अचेतसम्॥५॥_
_सृष्ट्वा त्रैलोक्यमखिलं वागभावात्तथा विधम्।_
_आधिक्या भावतः स्वस्य परमेष्ठी जगद्गुरुः॥६॥_
_दिव्य वर्षायुतं तेन तपो दुष्कर मुत्तमम्।_
_ततः कदाचित् संजाता वाणी सर्वार्थ शोभिता॥७॥_
_अहमस्मि महाविद्या सर्व वाचा मधीश्वरी।_
_मम नाम्नां सहस्रं तु उपदेक्ष्यामि अनुत्तमम्॥८॥_
_अनेन संस्तुता नित्यं पत्नी तव भवाम्यहम्।_
_त्वया सृष्टं जगत्सर्वं वाणीयुक्तं भविष्यति॥९॥_
_इदं रहस्यं परमं मम नाम सहस्रकम्।_
_सर्व पापौघ शमनं महा सारस्वत प्रदम्॥१०॥_
_महाकवित्वदं लोके वागीशत्व प्रदायकम्।_
_त्वं वा परः पुमान्यस्तु स्तवेन अनेन तोषयेत्॥११॥_
_तस्याहं किंकरी साक्षात् भविष्यामि न संशयः।_
_इत्युक्त्वा अन्तर्दधे वाणी तदारभ्य पितामहः॥१२॥_
_स्तुत्वा स्तोत्रेण दिव्येन तत्पतित्वंमवाप्तवान्।_
_वाणीयुक्तं जगत्सर्वं तदारभ्या भवन्मुने॥१३॥_
_तत्तेहं संप्रवक्ष्यामि शृणु यत्नेन नारद।_
_सावधानमना भूत्वा क्षणं शुद्धो मुनीश्वरः॥१४॥_
*॥ ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
वाग्वाणी वरदा वन्द्या वरारोहा वरप्रदा।
वृतिर्वागीश्वरी वार्ता वरा वागीश वल्लभा॥१॥
विश्वेश्वरी विश्ववन्द्या विश्वेश प्रियकारिणी।
वाग्वादिनी च वाग्देवी वृद्धिदा वृद्धिकारिणी॥२॥
वृद्धिर्वृद्धा विषघ्नी च वृष्टिर्वृष्टि प्रदायिनी।
विश्वाराध्या विश्वमाता विश्वधात्री विनायका॥३॥
विश्वशक्तिर्विश्वपारा विश्वा विश्वविभावरी।
वेदान्तवेदिनी वेद्या वित्ता वेदत्रयात्मिका॥४॥
वेदज्ञा वेदजननी विश्वा विश्वविभावरी।
वरेण्या वाङ्मयी वृद्धा विशिष्ट प्रियकारिणी॥५॥
विश्वतोवदना व्याप्ता व्यापिनी व्यापकात्मिका।
व्याळघ्नी व्याळभूषाङ्गी विरजा वेदनायिका॥६॥
वेदवेदान्त संवेद्या वेदान्त ज्ञानरूपिणी।
विभावरी च विक्रन्ता विश्वामित्रा विधिप्रिया॥७॥
वरिष्ठा विप्रकृष्टा च विप्रवर्यप्रपूजिता।
वेदरूपा वेदमयि वेदमूर्तिश्च वल्लाभा॥८॥
*॥ ॐ ग्रीं गुरुरूपे माम गृह्ण गृह्ण ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
गौरी गुणवती गोप्या गन्धर्वनगरप्रिया।
गुणमाता गुहान्तस्था गुरुरूपा गुरुप्रिया॥९॥
गिरिविद्या गानतुष्टा गायक प्रियकारिणी।
गायत्री गिरिशाराध्या गीर्गिरीश प्रियङ्करी॥१०॥
गिरिज्ञा ज्ञानविद्या च गिरिरूपा गिरीश्वरी।
गीर्माता गणसंस्तुत्या गणनीय गुणान्विता॥११॥
गूढरूपा गुहा गोप्या गोरूपा गौर्गुणात्मिका।
गुर्वी गुर्वम्बिका गुह्या गेयजा गृहनाशिनी॥१२॥
गृहिणी गृहदोषघ्नी गवघ्नी गुरुवत्सला।
गृहात्मिका गृहाराध्या गृहबाधा विनाशिनी॥१३॥
गङ्गा गिरिसुता गम्या गजयाना गुहस्तुता।
गरुडासन संसेव्या गोमती गुणशालिनी॥१४॥
*॥ ॐ ऐं नमश्शारदे श्रीं शुद्धे नमश्शारदे ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
शारदा शाश्वती शैवी शांकरी शंकरात्मिका।
श्रीश्शर्वाणी शतघ्नी च शरच्चंद्र निभानना॥१५॥
शर्मिष्ठा शमनघ्नी च शतसाहस्र रूपिणी।
शिवा शम्भुःप्रिया श्रद्धा श्रुतिरूपा श्रुतिप्रिया॥१६॥
शुचिष्मती शर्मकरी शुद्धिदा शुद्धिरूपिणी।
शिवाशिवंकरीशुद्धा शिवाराध्याशिवात्मिका॥१७॥
श्रीमती श्रीमयी श्राव्या श्रुतिः श्रवणगोचारा।
शान्तिश्शान्तिकरीशान्ता शान्ताचारप्रियंकरी॥१८॥
शीललभ्या शीलवती श्रीमाता शुभकारिणी।
शुभवाणी शुद्धविद्या शुद्धचित्त प्रपूजिता॥१९॥
श्रीकरी श्रुतपापघ्नी शुभाक्षी शुचिवल्लभा।
शिवेतरघ्नी शबरी श्रवणीय गुणान्विता॥२०॥
शौरी शिरीषपुष्पाभा शमनिष्ठा शमात्मिका।
शमान्विता शमाराध्या शितिकण्ठ प्रपूजिता॥२१॥
शुद्धिः शुद्धिकरी श्रेष्ठा श्रुतानन्ता शुभावहा।
सरस्वाती च सर्वज्ञा सर्वसिद्धि प्रदायिनी॥२२॥
*॥ ॐ ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
सरस्वती च सावित्री सन्ध्या सर्वेप्सितप्रदा।
सर्वार्तिघ्नी सर्वमयी सर्वविद्या प्रदायिनी ॥२३॥
सर्वेश्वरी सर्वपुण्या सर्गस्थित्यन्तकारिणी।
सर्वाराध्या सर्वमाता सर्वदेव निषेेविता॥२४॥
सर्वैश्वर्य प्रदा सत्या सती सत्व गुणाश्रया।
स्वरक्रम पदाकारा सर्वदोष निषूदिनी॥२५॥
सहस्राक्षी सहस्रास्या सहस्रपद संयुता।
सहस्रहस्ता साहस्र गुणालंकृत विग्रहा॥२६॥
सहस्रशीर्ष सद्रूपा स्वधा स्वाहा सुधामयी।
षड्ग्रन्थिभेदिनी सेव्या सर्वलोकैक पूजिता॥२७॥
स्तुत्या स्तुतिमयि साध्या सवितृ प्रियकारिणी।
संशयच्छेदिनी सांख्यवेद्या संख्या सदीश्वरी॥२८॥
सिद्धिदा सिद्धसम्पूज्या सर्वसिद्धि प्रदायिनी।
सर्वज्ञा सर्वशक्तिश्च सर्वसम्पत् प्रदायिनी॥२९॥
सर्वाशुभघ्नी सुखदा सुखा संवित्स्व रूपिणी।
सर्वसंभीषिणी सर्वजगत् सम्मोहिनी तथा॥३०॥
सर्वप्रियंकरी सर्वशुभदा सर्वमङ्गळा ।
सर्वमन्त्रमयी सर्वतीर्थ पुण्यफलप्रदा॥३१॥
सर्व पुण्यमयी सर्वव्याधिघ्नी सर्वकामदा।
सर्वविघ्नहरी सर्ववन्दिता सर्वमङ्गला॥३२॥
सर्वमन्त्रकरी सर्वलक्ष्मीस्सर्वगुणान्विता।
सर्वानन्दमयी सर्वज्ञानदा सत्यनायिका॥३३॥
सर्वज्ञानमयी सर्वराज्यदा सर्वमुक्तिदा।
सुप्रभा सर्वदा सर्वा सर्वलोक वशंकरी ॥३४॥
सुभगा सुन्दरी सिद्धा सिद्धाम्बा सिद्धमातृका।
सिद्धमाता सिद्धविद्या सिद्धेशी सिद्धरूपिणी॥३५॥
सुरूपिणी सुखमयी सेवक प्रियकारिणी।
स्वामिनी सर्वदा सेव्या स्थूल सूक्ष्मा पराम्बिका॥३६॥
साररूपा सरोरूपा सत्यभूता समाश्रया।
सितासिता सरोजाक्षि सरोजासन वल्लभा॥३७॥
सरोरुहाभा सर्वाङ्गी सुरेन्द्रादि प्रपूजिता।
*॥ ॐ ह्रीं ऐं महासरस्वती सारस्वतप्रदे ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
महादेवी महेशानी महासारस्वतप्रदा॥३८॥
महासरस्वती मुक्ता मुक्तिदा मलनाशिनी।
महेश्वरी महानन्दा महामन्त्रमयी मही॥३९॥
महालक्ष्मीर्महाविद्या माता मन्दरवासिनी।
मन्त्रगम्य मन्त्रमाता महामन्त्र फलप्रदा॥४०॥
महामुक्तिर्महानित्या महासिद्धि प्रदायिनी।
महासिद्धा महामाता महदाकार संयुता॥४१॥
महा महेश्वरी मूर्तिः मोक्षदा मणिभूषणा।
मेनका मानिनी मान्या मृत्युघ्नी मेरुरूपिणी॥४२॥
मदिराक्षी मदावासा मखरूपा मखेश्वरी।
महामोहा महामाया मातृणां मूर्ध्नि संस्थिता॥४३॥
महापुण्या मुदावासा महासम्पत् प्रदायिनी।
मणिपूरैकनिलया मधुरूपा महोत्काटा॥४४॥
महासूक्ष्मा महाशान्ता महाशान्ति प्रदायिनी।
मुनिस्तुता मोहहन्त्री माधवी माधवप्रिया॥४५॥
मा महादेव संस्तुत्या महिषीगणपूजिता।
मृष्टान्नदा च माहेन्द्री महेन्द्रपद दायिनी॥४६
मतिर्मतिप्रदा मेधा मर्त्यलोक निवासिनी।
मुख्या महानिवासा च महाभाग्य जानाश्रिता॥५७॥
महिळा महिमा मृत्युहारी मेधा प्रदायिनी।
मेध्या महावेगवती महामोक्ष फलप्रदा॥४८॥
महाप्रभाभा महती महादेव प्रियङ्करी।
महापोषा महर्धिश्च मुक्ताहार विभूषणा॥४९॥
माणिक्यभूषणा मन्त्रा मुख्यचन्द्रार्ध शेखरा।
मनोरूपा मनःशुद्धिः मनःशुद्धिप्रदायिनी॥५०॥
महाकारुण्य सम्पूर्णा मनोनमन वन्दिता।
महापातक जालघ्नी मुक्तिदा मुक्तभूषणा॥५१॥
मनोन्मनी महास्थूला महाक्रतु फलप्रदा।
महापुण्य फलप्राप्या माया त्रिपुर नाशिनी॥५२॥
महानसा महामेधा महामोदा महेश्वरी।
मालाधरी महोपाया महातीर्थ फलप्रदा॥५३॥
महामङ्गळ सम्पूर्णा महादारिद्र्य नाशिनी।
महामखा महामेधा महाकाळी महाप्रिया॥५४॥
महाभूषा महादेहा महाराज्ञी मुदालाया।
*॥ ॐ भ्रीं ऐं नमो भगवती ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
भूरिदा भाग्यदा भोग्या भोग्यदा भोगदायिनी॥५५॥
भवानी भूतिदा भूतिः भूमिर्भूमि सुनायिका।
भूतधात्री भयहरी भक्तसारस्वतप्रदा ॥५६॥
भुक्तिर्भुक्तिप्रदा भोक्त्त्री भक्तिर्भक्ति प्रदायिनी।
भक्तसायुज्यदा भक्तस्वर्गदा भक्तराज्यदा॥५७॥
भागीरथी भवाराध्या भाग्या सज्जन पूजिता।
भवस्तुत्या भानुमती भवसागरतारिणी ॥५८॥
भूतिर्भूषा च भूतेशी फाललोचन पूजिता ।
भूता भव्या भविष्या च भवविद्या भवात्मिका॥५९॥
बाधापहारिणी बन्धुरूपा भुवनपूजिता ।
भवघ्नी भक्तिलभ्या च भक्तरक्षण तत्परा ॥६०॥
भक्तार्तिशमनी भाग्या भोगदान कृतोद्यमा
भुजङ्गभूषणा भीमा भीमाक्षी भीम रुपिणी ॥६१॥
भावनी भ्रातृरूपा च भारती भवनायिका ।
भाषा भाषावती भीष्मा भैरवी भैरवप्रिया ॥६२॥
भूतिर्भासित सर्वाङ्गी भूतिदा भूतिनायिका ।
भास्वती भगमाला च भिक्षादान कृतोद्यमा ॥६३॥
भिक्षुरूपा भक्तिकरी भक्तलक्ष्मी प्रदायिनी ।
भ्रान्तिघ्ना भ्रान्तिरूपा च भूतिदा भूतिकारिणी॥६४॥
भिक्षणीया भिक्षुमाता भाग्यवद्दृष्टिगोचरा ।
भोगवती भोगरूपा भोगमोक्ष फलप्रदा ॥६५॥
भोगश्रान्ता भाग्यवती भक्ताघौघविनाशिनी।
*॥ ॐ ऐं क्लीं सौः बाले ब्राह्मी ब्रह्मपत्नी ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
ब्राह्मी ब्रह्मस्वरूपा च बृहती ब्रह्मवल्लभा ॥६६॥
ब्रह्मदा ब्रह्ममाता च ब्रह्माणी ब्रह्मदायिनी ।
ब्रह्मेशी ब्रह्मसंस्तुत्या ब्रह्मवेद्या बुधप्रिया ॥६७॥
बालेन्दुशेखरा बाला बलिपूजाकरप्रिया ।
बलदा बिन्दुरूपा च बालसूर्य समप्रभा ॥६८॥
ब्रह्मरूपा ब्रह्ममयि ब्रह्ममण्डल मध्यगा ।
ब्राह्मणी बुद्धिदा बुद्धिर्बुद्धिरूपा बुधेश्वरी ॥६९
बन्धक्षयकरी बाधा नाशिनी बन्धुरूपिणी ।
बिन्द्वालया बिन्दुभूषा बिन्दुनाद समन्विता ॥७०॥
बीजरूपा बीजमाता ब्रह्मण्या ब्रह्मकारिणी ।
बहुरूपा बालवती ब्रह्मजा ब्रह्मचारिणी ॥७१॥
ब्रह्मस्तुत्या ब्रह्मविद्या ब्रह्माण्डाधिप वल्लभा ।
ब्रह्मेशविष्णुरूपा च ब्रह्मविष्णु ईश संस्थिता ॥७२॥
बुद्धिरूपा बुधेशानी बन्धी बन्धविमोचनी ।
*॥ ॐ ह्रीं ऐं अं आम् , इं ईम् , उं ऊम् , ऋं ऋृम् , लृं लृृृम् , एं ऐं , ओं औं , कं खं गं घ ङ्ं , चं छं जं झं ञं , टं ठं डं ढं णं , तं थं दं धं नं , पं फं बं भं मं , यं रं लं वं , शं षं सं हं , ळं क्षं , अक्षरमाले अक्षरमालिका समलङ्कृते वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
अक्षमाला अक्षराकारा अक्षराक्षर फलप्रदा॥७३॥
अनन्तानन्द सुखदा अनन्तचन्द्रनिभानना ।
अनन्तमहिमा घोरा अनन्तगम्भीर सम्मिता॥७४॥
अदृष्टादृष्टिदानन्ता अदृष्टभाग्य फलप्रदा ।
अरुन्धत्य व्ययीनाथा अनेकसद्गुण संयुता॥७५॥
अनेकभूषणा दृश्या अनेकलेख निषेविता ।
अनन्तानन्त सुखदा अघोरा घोर स्वरूपिणी॥७६॥
अशेषदेवतारूपा अमृतरूपा अमृतेश्वरी ।
अनवद्या अनेकहस्ता अनेकमाणिक्य भूषणा॥७७॥
अनेकविघ्नसंहर्त्रीतु अनेका भरणान्विता ।
अविद्याज्ञान संहर्त्री ह्यविद्याजाल नाशिनी॥७८॥
अभिरूपा नवद्याङ्गी ह्यप्रतर्क्य गतिप्रदा ।
अकळंकारूपिणी च ह्यनुग्रहपरायणा ॥७९॥
अंबरस्थांबर मया अंबरमालांबुजेक्षणा ।
अंबिकाब्ज कराब्जस्थां अशुमत्यंशु शतान्विता॥८०॥
अम्बुजानवराखण्डा अंबुजासनमहाप्रिया ।
अजरामर संसेव्या अजरसेवित पद्युगा ॥८१॥
अतुलार्थ प्रदार्थैक्य अत्युदारातु अभयान्विता ।
अनाथवत्सला अनन्तप्रिया अनन्त ईप्सिदप्रदा॥८२॥
अंबुजाक्षी अंबुरूपा अंबुजातोद्भव महाप्रिया ।
अखण्डातु अमरस्तुत्या अमरनायकपूजिता ॥८३॥
अजेयातु अजसंकाशा अज्ञाननाशिनी अभीष्टदा ।
अक्ताघनेना चास्त्रेशी ह्यलक्ष्मीनाशिनी तथा ॥८४
अनन्तसारा अनन्तश्रीःअनन्तविधि पूजिता ।
अभीष्टा अमर्त्य संपूज्या ह्यस्तोदय विवर्जिता ॥८५॥
आस्तिकस्त्वान्तनिलया अस्त्ररूपा अस्त्रवती तथा ।
अस्खलत्यः स्खलद्रूपा अस्खलद्विद्या प्रदायिनी ॥८६॥
अस्खलत् सिद्धिदानन्दा अम्बुजा अमरनायिका।
अमेया अशेषपाघ्नी अक्षयसारस्वतप्रदा ॥८७॥
*॥ ॐ ज्यां ह्रीं जय जय जगन्मातः ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
जया जयन्ती जयदा जन्मकर्म विवर्जिता ।
जगत्प्रिया जगन्माता जगदीश्वर वल्लभा ॥८८॥
जातिर्जया जितामित्रा जप्या जपन कारिणी ।
जीवनी जीवनिलया जीवाख्या जीवधारिणी॥८९॥
जाह्नवी ज्या जपवती जातिरूपा जयप्रदा ।
जनार्दन प्रियकरी जोषनीया जगत्स्थिता ॥९०॥
जगज्येष्ठा जगन्माया जीवनत्राणकारिणी ।
जीवातुलतिका जीवा जन्मी जन्मनिबर्हणी ॥९१॥
जाड्यविध्वंसनकरी जगद्योनिर्जयात्मिका ।
जगदानन्दजननी जम्बूश्च जलजेक्षणा ॥९२॥
जयन्ती जङ्गपूगघ्नी जनित ज्ञानविग्रहा ।
जटा जटावती जप्या जपकर्तृ प्रियंकरी ॥९३॥
जपकृत्पाप संहर्त्री जपकृत् फलदायिनी ।
जपापुष्प समप्रख्या जपाकुसुम धारिणी ॥९४॥
जननी जन्मरहिता ज्योतिर्वृत्य भिदायिनी ।
जटाजूटन चन्द्रार्धा जगत् सृष्टिकरी तथा ॥९५॥
जगत्त्राणकरी जाड्य ध्वंसकर्त्री जयेश्वरी ।
जगद्बीजा जयावासा जन्मभू र्जन्मनाशिनी॥९६॥
जमान्त्यरहिता जैत्री जगद्यो निर्जपात्मिका ।
जयलक्षण संपूर्णा जयदान कृतोद्यमा ॥९७॥
जम्भाराद्यादि संस्तुत्या जम्भारि फलदायिनी ।
जगत्त्रयहिता ज्येष्ठा जगत्त्रय वशंकरी ॥९८॥
जगत्त्रयांबा जगती ज्वाला ज्वालित लोचना ।
ज्वालिनी ज्वलनाभासा ज्वलती ज्वलनात्मिका॥९९॥
जिताराति सुरस्तुत्या जितक्रोधा जितेन्द्रिया ।
जरामरण शून्या च जनित्री जन्मनाशिनी॥१००॥
जलजाभा जलमयी जलजासन वल्लभा ।
जलजस्था जपाराध्या जनमङ्गळकारिणी॥१०१॥
*॥ ॐ ऐं क्लीं सौः कल्याणी कामधारिणी वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
कामिनी कामरूपा च काम्या कामप्रदायिनी ।
कमौळी कामदा कर्त्री क्रतुकर्म फलप्रदा॥१०२॥
कृतघ्नघ्नी क्रियारूपा कार्य कारण रूपिणी ।
कञ्जाक्षी करुणारूपा केवलामर सेविता॥१०३॥
कल्याणकारिणी कांता कांतिदा कांतिरूपिणी।
कमला कमलावासा कमलोत्पल मालिनी॥१०४॥
कुमुद्वती च कल्याणी कान्ता कामेशवल्लभा ।
कामेश्वरी कमलिनी कामदा कामबन्धिनी॥१०५॥
कामधेनुः काञ्चनाक्षी काञ्चनाभा कळानिधिः ।
क्रिया कीर्तिकरी कीर्तिः क्रतुश्रेष्ठा कृतेश्वरी॥१०६॥
क्रतु सर्वक्रिया स्तुत्या क्रतुकृत् प्रियकारिणी ।
क्लेशनाशकरी कर्त्री कर्मदा कर्मबन्धिनी ॥१०७॥
कर्मबन्धहरी कृष्टा क्लमघ्नी कञ्जलोचना ।
कंदर्पजननी कान्ता करूणा करुणावती ॥१०८॥
क्लींकारिणी कृपाकारा कृपासिन्धुः कृपावती ।
करुणार्द्रा कीर्तिकरी कल्मषघ्नी क्रियाकरी॥१०९॥
क्रियाशक्तिः कामरूपा कमलोत्पल गन्धिनी ।
कळा कळावती कुर्मी कूटस्था कञ्जसंस्थिता॥११०॥
काळिका कल्मषघ्नी च कमनीय जटान्विता ।
करपद्मा करा अभीष्टप्रदा क्रतुफलप्रदा ॥१११॥
कौशिकी कोशदा काव्या कर्त्री कोशेश्वरी कृशा।
कूर्मयाना कल्पलता कालकूट विनाशिनी ॥११२॥
कल्पोद्यानवती कल्पनवस्था कल्पकारिणी ।
कदम्ब कुसुमाभासा कदम्ब कुसुमप्रिया ॥११३॥
कदम्बोद्यान मध्यस्था कीर्तिदा कीर्तिभूषणा ।
कुलमाता कुलावासा कुलाचार प्रियङ्करी ॥११४॥
कुलनाथा कामकळा कळानाथा कळेश्वरी ।
कुंदमंदार पुष्पाभा कपर्दस्थित चंद्रिका ॥११५॥
कवित्वदा काव्यमाता कविमाता कळाप्रदा।
*॥ ॐ सौः क्लीं ऐं ततो वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
तरुणी तरुणीताता ताराधिप समानना ॥११६॥
तृप्तिस्तृप्तिप्रदा तर्क्या तपनी तापिनी तथा ।
तर्पणी तीर्थरूपा च त्रिदशा त्रिदशेश्वरी ॥११७॥
त्रिदिवेशी त्रिजननी त्रिमाता त्र्यंबकेश्वरी ।
त्रिपुरा त्रिपुरेशानी त्र्यंबका त्रिपुरांबिका ॥११८॥
त्रिपुरश्रीः त्रयीरूपा त्रयीवेद्या त्रयीश्वरी ।
त्रयी अन्तवेदिनी ताम्रा तापत्रितय हारिणी॥११९॥
तमाल सदृशी त्राता तरुणादित्य सन्निभा ।
त्रैलोक्यव्यापिनी तृप्ता तृप्तिकृत्तत्व रूपिणी ॥१२०॥
तुर्या त्रैलोक्य संस्तुत्या त्रिगुणा त्रिगुणेश्वरी ।
त्रिपुरघ्नी त्रिमाता च त्र्यंबका त्रिगुणान्विता ॥१२१॥
तृष्णाच्छेदकरी तृप्ता तीक्ष्णा तीक्ष्ण स्वरूपिणी ।
तुला तुलादिरहिता तत्तद्ब्रह्म स्वरूपिणी ॥१२२॥
त्राणकर्त्री त्रिपापघ्नी त्रिपदा त्रिदशान्विता ।
तथ्या त्रिशक्तिस्त्रिपदा तुर्या त्रैलोक्य सुंदरी ॥१२३॥
तेजस्करी त्रिमूर्त्याद्या तेजोरूपा त्रिधामता ।
त्रिचक्रकर्त्री त्रिभगा तुर्यातीत फलप्रदा ॥१२४॥
तेजस्विनी तापहारी तापोपप्लव नाशिनी ।
तेजोगर्भा तपःसारा त्रिपुरारि प्रियंकरी ॥१२५॥
तन्वी तापस सन्तुष्टा तपनाङ्गज भीतिनुत् ।
त्रिलोचना त्रिमार्गा च तृतीया त्रिदशस्तुता ॥१२६॥
त्रिसुन्दरी त्रिपथगा तुरीय पददायिनि ।
*॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं नमः शुद्ध फलदे ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
शुभा शुभावती शान्ता शान्तिदा शुभदायिनी ॥१२७॥
शीतला शूलिनी शीता श्रीमती च शुभान्विता ।
*॥ ॐ ऐं यां यीं यूं यें यौं यः ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॥*
योगसिद्धिप्रदा योग्या यज्ञेन परिपूरीता ॥१२८॥
यज्ञा यज्ञमयी यक्षी यक्षिणी यक्षिवल्लभा ।
यज्ञप्रिया यज्ञपूज्या यज्ञतुष्टा यमस्तुता ॥१२९॥
यामिनीयप्रभा याम्या यजनीया यशस्करी ।
यज्ञकर्त्री यज्ञरूपा यशोदा यज्ञसंस्तुता ॥१३०॥
यज्ञेशी यज्ञफलदा योगयोनिर्यजु स्तुता ।
यमिसेव्या यमाराध्या यमीपूज्या यमीश्वरी ॥१३१॥
योगिनी योग रूपा च योगकर्तृ प्रियंकरी ।
योगयुक्ता योगमयी योगयोगीश्वराम्बिका ॥१३२॥
योगज्ञानमयी योनिः यमाद्यष्टाङ्ग योगता ।
यन्त्रिताघौघ संहारा यमलोक निवारिणी॥१३३॥
यष्टिव्यष्टीश संस्तुत्या यमाद्यष्टाङ्ग योगयुक् ।
योगीश्वरी योगमाता योगसिद्धा च योगदा ॥१३४॥
योगारूढा योगमयी योगरूपायवीयसी ।
यन्त्ररूपा च यन्त्रस्था यन्त्र पूज्या च यन्त्रिता॥१३५॥
युगकर्त्री युगमयी युगधर्म विवर्जिता ।
यमुना यमिनी याम्या यमुनाजल मध्यगा ॥१३६॥
यातायात प्रशमनी यातनानान्य कृन्तनी ।
योगावासा योगिवन्द्या यत्तत् शब्द स्वरूपिणी॥१३७॥
योगक्षेममयी यन्त्रा यावदक्षर मातृका ।
यावत् पदमयी यावच्छब्दरूपा यथेश्वरी ॥१३८॥
यत्तदीया यक्षवन्द्या यद्विद्या यतिसंस्तुता ।
यावद्विद्यामयी यावद्विद्या बृन्द सुवन्दिता ॥१३९॥
योगिहृत् पद्मनिलया योगिवर्य प्रियंकरी ।
योगिवन्द्या योगिमाता योगीश फलदायिनी ॥१४०॥
यक्षवन्द्या यक्षपूज्या यक्षराज सुपूजिता ।
यज्ञरूपा यज्ञतुष्टा यायजूक स्वरूपिणी ॥१४१॥
यन्त्राराध्या यन्त्रमध्या यन्त्रकर्तृ प्रियंकरी ।
यन्त्रारूढा यन्त्रपूज्या योगिध्यान परायणा ॥१४२॥
यजनीया यमस्तुत्या योगयुक्ता यशस्करी ।
योगबद्धा यतिस्तुत्या योगज्ञा योगनायकी ॥१४३॥
योगिज्ञानप्रदा यक्षी यमबाधा विनाशिनी ।
योगिकाम्यप्रदात्री च योगिमोक्ष प्रदायिनी ॥१४४॥
*फलश्रुतिः*
_इति नाम्नां सरस्वत्याः सहस्रं समुदीरितम् ।_
_मन्त्रात्मकं महागोप्यं महासारस्वत प्रदम्॥१॥_
_यः पठेत् श्रृणुयात् भक्त्या त्रिकालं साधकः पुमान्।_
_सर्वविद्यानिधिः साक्षात् स एव भवति ध्रुवम्॥२॥_
_लभते सम्पदः सर्वाःपुत्रपौत्रादि संयुताः ।_
_मूकोपि सर्वविद्यासु चतुर्मुख इवापरः ॥३॥_
_भूत्वा प्राप्नोति सान्निध्यं अन्ते धातुर्मुनीश्वर ।_
_सर्वमन्त्रमयं सर्वविद्यामान फलप्रदम् ॥४॥_
_महाकवित्वदं पुंसां महासिधि प्रदायकम् ।_
_कस्मैचित् नप्रदातव्यं प्राणैः कण्ठगतैरपि ॥५॥_
_महारहस्यं सततं वाणीनाम सहस्रकम् ।_
_सुसिद्धमस्मदादीनां स्तोत्रं ते समुदीरितम्॥७_
*॥ इति श्रीस्कन्द पुराणान्तरगत श्रीसनत्कुमारसंहितायां श्रीनारदसनत्कुमारसंवादे श्रीसरस्वातीसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥*