Sunday 29 January 2017

गया जी मे पिन्डदान करने का महत्व


श्राद्धारम्भे गयायां ध्यात्वा ध्यात्वादेवं गदाधरं ।
ताभ्यांचैव मनशाध्यात्वा ततः श्राद्धं समाचरेत॥

गयाजी तीर्थ पुरे भूमण्डल के अद्वितीय वैदिक तीर्थ है की जिसका नाम स्मरण से फल की प्राप्ति संभव है पुराणों में यहाँ तक कह दिया गया है की श्राद्ध घर पर करें या कोई तीर्थ में गयाजीतीर्थ का स्मरण न किया जाय और श्राद्ध किया जाय तो निष्फल बताया गया है ।

आगे वायुपुराण से जाने तो
गृह्नात् चरित मात्रेण गयायां गमणंप्रति
स्वर्गारोहण सोपानम पितृणां च पदे
पदे अश्वमेधस्य यत्फलं गच्छतो गयाम
तत्फलं भवेन्नूनं श्राद्ध पूर्ती नि संशयः

गयाजी तीर्थ की महिमा अगर गयाजी यात्रा का संकल्प लेते है तो आपके पित्र आमंत्रित हो जाते है और सारे पित्र गण कामना करने लगते है की कैसे भी मेरा श्राद्ध कर्ता गयाजीतीर्थ के भूमि से अपना पाद स्पर्श करे की जैसे जैसे पाद स्पर्श होगा तो हम उर्धगामी होकर स्वर्ग के ओर प्रस्थान करेगें
और हमारा मोक्ष प्राप्ति हो जायेगी और हमसब पित्र गण स्वर्ग के अधिकारी हो जायेगें तो हमारे कर्ता को हजारों अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होगा ।

पद्मपुराण में भगवान कहते है ।
गयायां विष्णुपादाब्जं वरंतिर्थश्च पित्रणां

मै गयाजीतीर्थ में विष्णुपद के रूप में महाँ पित्र स्थित हूँ और मेरा नाम वरह और गदापाणी  है साथ मै पितृ मोक्ष करने के लिए स्थित हूँ।

भगवान का ही एक वाणी -
पितृ प्रियंतेमापन्ने प्रियन्ते स्वर्गदेवताः

पित्र पूजा करने से देवलोक के सारे देवताओं को प्रसऩ्नता प्राप्त होती है।
क्योंकि जैसे (हिरण्य पात्रं मधोरोह पूर्णं ददाती)सोने के कटोरी में सहद भर दिया जाये तो स्वर्ण और सहद मिलकर एक दिव्य उर्जा प्रदान करती है ।
जैसे( इन्द्र सोमपिवतु क्षेमोस्तुनः)स्वयं भगवान इन्द्र जब प्रमानन्दसोमरस पाकर आनन्दित हो जाते है और सारे पाप को नष्ट कर देते है ठिक उसी तरह पित्र गण व देवगण गयाजीतीर्थ ऐसे स्थान पर अपने पुत्र,पौत्र,प्रपौत्र के द्वारा श्राद्ध अन्न जल प्राप्त कर पूर्ण तृप्त हो जाते हैँ तब प्रसन्न होकर अपने श्राद्ध कर्ता को आनन्द ही आनंद देते है जैसे

आयु पुत्रान्यशस्वर्गं कृति पूष्टिं वलंश्रीयं पशु सौख्यं धनं धान्यं प्राप्तन्यात पितृ पूजनात ।

आयु धन धान्य समृद्धि स्वर्ग जैसा आनन्द साथ आपके हर कामना का पूर्ति होने का आशिर्वाद प्रदान करते है

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