Wednesday 24 May 2017

श्राद्ध या पिन्डदान कितने प्रकार के होते है

श्राद्ध या पिन्डदान क्यो करना चाहिए श्राद्ध या पिन्डदान के महत्व विषय के लिए अवश्य पढ़े

पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं. श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है.

श्राद्ध या पिन्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिन्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिन्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिन्डदान कहते है दझिण भारतीय पिन्डदान को श्राद्ध कहते है

श्राद्ध के प्रकार

शास्त्रों में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं -

1.    नित्य श्राद्ध : वे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं. इसमें विश्वदेव नहीं होते हैं.
2.    नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है. एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवित्रक होता है.
3.    काम्य श्राद्ध : वह श्राद्ध जो किसी कामना की पूर्ती के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है.
4.    वृद्धि (नान्दी) श्राद्ध : मांगलिक कार्यों ( पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य) में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नान्दी श्राद्ध कहते हैं.
5.     पावर्ण श्राद्ध : पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो आश्विन मास के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं. ये विश्वदेव सहित श्राद्ध हैं.
6.    सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है.
7.    गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्ठीश्राद्ध कहते हैं.
8.    शुद्धयर्थ श्राद्ध : शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किये जाते हैं.
9.    कर्मांग श्राद्ध : कर्मांग श्राद्ध वे हैं, जो षोडश संस्कारों में किये जाते हैं.
10.    दैविक श्राद्ध : देवताओं की संतुष्टि की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें दैविक श्राद्ध कहते हैं.
11.    यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे यात्रार्थ कहते हैं.
12.    पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें पुष्टयर्थ श्राद्ध कहते हैं.
13.    श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्डपितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं, जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कर्मांग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाते हैं.

कब किया जाता है श्राद्ध?

श्राद्ध की महत्ता को स्पष्ट करने से पूर्व यह जानना भी आवश्यक है की श्राद्ध कब किया जाता है. इस संबंध में शास्त्रों में श्राद्ध किये जाने के निम्नलिखित अवसर बताये गए हैं -
1.   आश्विन मास के पितृपक्ष के 16 दिन.
2.   वर्ष की 12 अमावास्याएं तथा अधिक मास की अमावस्या.
3.   वर्ष की 12 संक्रांतियां.
4.   वर्ष में 4 युगादी तिथियाँ.
5.   वर्ष में 14 मन्वादी तिथियाँ.
6.   वर्ष में 12 वैध्रति योग
7.   वर्ष में 12 व्यतिपात योग.
8.   पांच अष्टका.
9.   पांच अन्वष्टका
10.   पांच पूर्वेघु.
11.   तीन नक्षत्र: रोहिणी, आर्द्रा, मघा.
12.   एक कारण : विष्टि.
13.   दो तिथियाँ : अष्टमी और सप्तमी.
14.   ग्रहण : सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण.
15.   मृत्यु या क्षय तिथि.

क्यों आवश्यक है श्राद्ध?

श्राद्धकर्म क्यों आवश्यक है, इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं -
1.    श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है.
2.    श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है.
3.    महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है.
4.    मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं.
5.    अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है.
6.    यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है.
7.    ब्रह्मपुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं. शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है.

श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से ही करें

श्राद्ध कर्म को शास्त्रोक्त विधि से ही करना चाहिए. शास्त्रों में दिए गए नियमों का पूर्णतः पालन होना चाहिए, तभी श्राद्ध कर्म अपने उद्देश्य की पूर्ती कर पाते हैं. महाभारत के अनुशासन पर्व में इस संबंध में एक आख्यान मिलता है. भीष्म अपने पिता शांतनु का श्राद्ध करने के लिये हरिद्वार गए. वहां उन्होंने कई सिद्ध ऋषियों को बुलाकर श्राद्ध कर्म आरम्भ किया. एकाग्रचित होकर उन्होंने जैसे ही विधिवत पिंडदान देना आरम्भ किया, तो पिण्डदान देने के लिये पिण्ड वेदी पर जो कुश बिछाए गए थे, उनमें से एक हाथ निकलकर बाहर आया. यह हाथ भीष में पिता शांतनु का था. शांतनु स्वयं अपने निमित्त पिण्ड का दाल लेने के लिये उपस्थित हो गए थे. ज्ञानी पुरूष भीष्म ने पिण्ड का दान उनके हाथ में न करके इस हेतु बनाई गयी वेदी के ऊपर रखे कुशों पर किया, क्योंकि शास्त्रों में यही कहा गया है की कुशों पर पिण्डदान करें -- 'पिण्डो देयः कुशोष्वीति.' ऐसी करने पर शांतनु का हाथ अदृश्य हो गया. भीष्म ने विधिवत श्राद्ध कर्म पूर्ण किया और वापस लौट आए. रात्री में शांतनु ने भीष्म को स्वप्न दिया और प्रसन्नतापूर्वक कहा की 'भारत श्रेष्ठ! तुम शास्त्रीय सिद्धांत पर दृढतापूर्वक डटे हुए हो, हम इससे बहुत प्रसन्न हैं, तुम त्रिकालदर्शी होओ और अंत में तुम्हें भगवान् विष्णु की प्राप्ति ही, साथ ही जब तुम्हारी इच्छा हो, तभी मृत्यु तुम्हारा स्पर्श करे.' ऐसा आशीर्वाद देकर शांतनु ने परम मुक्ति प्राप्त की और पितामह भीष्म को भी पितरों की भक्ति का फल प्राप्त हुआ. कहने का तात्पर्य यही है की श्राद्धों को शास्त्रोक्त विधि के अनुरूप हेए करना चाहिए.

श्राद्ध के लिये ज्ञातव्य बातें ... ...

1.    श्राद्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया दक्षिण की ओर मुंह करके तथा अपसव्य (जनेऊ को दाहिने कंधे पर डालकर बाएं हाथ के नीचे कर लेने की स्थिति) होकर की जाती है.
2.    श्राद्ध में दूध, गंगाजल, मधु, तसर का कपड़ा, दोहित्र, कुतप, कृष्ण तिल और कुश ये आठ बड़े महत्व के प्रयोजनीय हैं.
3.    श्राद्ध में पितरों को भोजन सामग्री देने के लिये हाथ से बने हुए मिटटी के (चाक से बने हुए न हों और कच्चे हों) बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए. मिट्टी के बने हुए बर्तनों के अलावा लकड़ी के बर्तन, पत्तों के दोने (केले के पत्ते का नहीं हों) का भी प्रयोग किया जा सकता है.
4.    श्राद्ध में पितरों को भोजन सामग्री देने के लिये चांदी के बर्तनों का महत्व विशेष है. सोने, ताम्बे और कांसे के बर्तन भी ग्राह्य हैं. इसमें लोहे के बर्तनों का कदापि प्रयोग न करें.
5.    श्राद्ध में सफ़ेद पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए. कमल का भी प्रयोग किया जा सकता है. श्राद्ध में कदंब, देवड़ा, मौलश्री, बेलपत्र, करवीर, लाल तथा काले रंग के पुष्प, तीक्ष्ण गंध वाले पुष्प आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
6.    श्राद्ध में तुलसीदल का प्रयोग आवश्यक है.
7.   श्राद्ध में गाय के दूध एवं उससे बनी हुई वस्तुएँ, जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, आम, बेल, अनार, आंवला, खीर, नारियल, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, चिरौंजी, बेर, इन्द्रजौ, मटर, कचनार, सरसों, सरसों का तेल, तिल्ली का तेल आदि का प्रयोग करना चाहिए. श्राद्ध में उरद, मसूर, अरहर, गाजर, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, सुपारी, कुलथी, कैथ, महुआ, अलसी, पीली सरसों, चना, मांस, अंडा आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
8.    श्राद्ध बिना आसन के नहीं करना चाहिए. आसन में भी कुश, तृण, काष्ठ (लोहे की कील लगी हुए ना हो), ऊन, रेशम के आसन प्रशस्त हैं. 
9.    श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राह्मण को भोजन करते समय आवश्यक रूप से मौन रहना चाहिए.
10.    श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्व उनको बिठाकर श्रद्धापूर्वक उनके पैर धोने चाहिए.
11.    श्राद्धकर्ता को श्राद्ध के दिन दातुन, पान का सेवन, शरीर पर तेल की मालिश, उपवास, स्त्री संभोग, दवाई का सेवन, दूसरे का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए.
12.    श्राद्ध के दिन भोजन करने वाले ब्राह्मण को पुनर्भोजन (दुबारा खाना), यात्रा, भार ढोना,शारीरिक परिक्श्रम करना, मैथुन, दान, प्रतिग्रह तथा होम नहीं करना चाहिए.
13.    श्राद्ध में श्रीखण्ड, सफ़ेद चन्दन, खस, गोपीचन्दन का ही प्रयोग करना चाहिए. श्राद्ध में कस्तूरी, रक्त चन्दन, गोरोचन आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
14.    श्राद्ध में अग्नि पर अकेले घी नहीं डालना चाहिए.
15.    निर्धनता की स्थिति में केवल शाक से श्राद्ध करना चाहिए. यदि शाक भी न हो, तो घास काटकर गाय को खिला देने से श्राद्ध सम्पन्न हो जाता है. यदि किसी कारणवश घास भी उपलब्ध न हो, तो किसी एकांत स्थान पर जाकर श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक अपने हाथों को ऊपर उठाते हुए पितरों से प्रार्थना करें-
न मेsस्ति वित्तं न धनं नान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्नोsस्मि।
तृष्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वत्मर्नि मारूतस्य!!
हे मेरे पितृगण! मेरे पास श्राद्ध के उपयुक्त न तो धन है, न धान्य आदि. हाँ, मेरे पास आपके लिये श्रद्धा और भक्ति है. मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूँ. आप तृप्त होय जाएं. मैनें दोनों भुजाओं को आकाश में उठा रखा है.
16.    गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध किये जाने का विशेष महत्व है.
17.    श्राद्ध ऐसी भूमि पर किया जाना चाहिए जिसका ढाल दक्षिण दिशा की ओर हो.
18.    पितरों के उद्देश्य से किये जाने वाले दान में -- गाय, भूमि, तिल, सोना, घी, वस्त्र, धान्य, गुड, चांदी तथा नमक में से एक या अधिक या सभी वस्तुएँ होनी चाहिए. इस सभी वस्तुओं का दान इस महादान कहलाता है.
19.    धान्य में सप्तधान्य देने का विधान भी है. सप्तधान्य में जौ, गेहूं (कंगनी), धान, तिल, टांगुन(मूंग), सांवा और चना होता है.
20.    मृत्यु के समय जो तिथि होती है, उसे ही मरण तिथि माना जाता है और श्राद्ध उसी तिथि को करना चाहिए. मरण तिथि के निर्धारण में सूर्यदयकालीन तिथि ग्राह्य नहीं है.
21.    अर्ध्यप्रदान करने के बाद एकोदिष्ट श्राद्ध में पात्र को सीधा रखना चाहिए, जबकि पार्वण श्राद्ध में उलटा रखना चाहिए.
22.    पति के रहते मृत नारी के श्राद्ध में ब्राह्मण के साथ सौभाग्यवती ब्राह्मणी को भी भोजन कराना चाहिए.
23.    श्राद्ध के समय श्राद्ध कर्ता को पवित्री धारण अवश्य करनी चाहिए.

दारिद्र्य दहन स्तोत्र

🙏💥 *दारिद्रय दहन स्त्रोत्र* 💥🙏

व्यक्ति घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, कर्ज में डूबे हों, व्यापार व्यवसाय की पूंजी बार-बार फंस जाती हो उन्हें दारिद्रय दहन स्तोत्र से शिवजी की आराधना करनी चाहिए।
महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र बहुत असरदायक है। यदि संकट बहुत ज्यादा है तो शिवमंदिर में या शिव की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन तीन बार इसका पाठ करें तो विशेष लाभ होगा।
जो व्यक्ति कष्ट में हैं अगर वह स्वयं पाठ करें तो सर्वोत्तम फलदायी होता है लेकिन परिजन जैसे पत्नी या माता-पिता भी उसके बदले पाठ करें तो लाभ होता है।
शिवजी का ध्यान कर मन में संकल्प करें. जो मनोकामना हो उसका ध्यान करें फिर पाठ आरंभ करें।
श्लोकों को गाकर पढ़े तो बहुत अच्छा, अन्यथा मन में भी पाठ कर सकते हैं।
आर्थिक संकटों के साथ-साथ परिवार में सुख शांति के लिए भी इस मंत्र का जप बताया गया है।

     *।। दारिद्रय दहन स्तोत्रम् ।।*

विश्वेशराय नरकार्ण अवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय।
कर्पूर कान्ति धवलाय, जटाधराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।1
गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय,
कलांतकाय भुजगाधिप कंकणाय।
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
द्रारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।2
भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्ग भवसागर तारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।3
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय,
भालेक्षणाय मणिकुंडल-मण्डिताय।
मँजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।4
पंचाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मंडिताय।
आनंद भूमि वरदाय तमोमयाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।5
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय,
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।6
रामप्रियाय रधुनाथ वरप्रदाय
नाग प्रियाय नरकार्ण अवताराणाय।
पुण्येषु पुण्य भरिताय सुरार्चिताय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।7
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय।
मातंग चर्म वसनाय महेश्वराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।8
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्व रोग निवारणम्
सर्व संपत् करं शीघ्रं पुत्र पौत्रादि वर्धनम्।।
शुभदं कामदं ह्दयं धनधान्य प्रवर्धनम्
त्रिसंध्यं यः पठेन् नित्यम् स हि स्वर्गम् वाप्युन्यात्।।9

।। इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम संपूर्णम् ।।

पितृदोष, प्रेतयोनि और पितरो का ऱूण बन्धन


प्रत्येक मनुष्य जातक पर उसके जन्म के साथ ही तीन प्रकार के ऋण अर्थात देव ऋण, ऋषि ऋण और मातृपितृ ऋण अनिवार्य रूप से चुकाने बाध्यकारी हो जाते है। जन्म के बाद इन बाध्यकारी होने जाने वाले ऋणों से यदि प्रयास पूर्वक मुक्ति प्राप्त न की जाए तो जीवन की प्राप्तियों का अर्थ अधूरा रह जाता है। ज्योतिष के अनुसार इन दोषों से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त माना मामा-मामी मौसा-मौसी नाना-नानी तथा पितृ पक्ष अर्थात दादा-दादी चाचा-चाची ताऊ ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है।

जन्मकुण्डली में यदि चंद्र पर राहु केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ ऋण से पीड़ित होता है। चन्द्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है अतः ऐसे जातक को निरन्तर मानसिक अशांति से भी पीड़ित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मातृ ऋण से मुक्ति के प्श्चात ही जीवन में शांति मिलनी संभव होती है।

पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट संतानाभाव संतान का स्वास्यि खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है। यदि संतान अपंग मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन उसी पर केन्द्रित हो जाता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।

माता-पिता के अतिरिक्त हमें जीवन में अनेक व्यक्तियों का सहयोग व सहायता प्राप्त होती है गाय बकरी आदि पशुओं से दूध मिलता है। फल फूल व अन्य साधनों से हमारा जीवन सुखमय होता है इन्हें बनाने व इनका जीवन चलाने में यदि हमने अपनी ओर से किसी प्रकार का सहयोग नहीं दिया तो इनका भी ऋण हमारे ऊपर हो जाता है। जन कल्याण के कार्यो में रूचि लेकर हम इस ऋण से उस ऋण हो सकते हैं। देव ऋण अर्थात देवताओं के ऋण से भी हम पीड़ित होते हैं। हमारे लिए सर्वप्रथम देवता हैं हमारे माता-पिता, परन्तु हमारे इष्टदेव का स्थान भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति भव्य व शानदार बंगला बना लेता है अपने व्यावसायिक स्थान का भी विज्ञतार कर लेता है, किन्तु उस जगत के स्वामी के स्थान के लिए सबसे अन्त में सोचता है या सोचता ही नहीं है जिसकी अनुकम्पा से समस्त ऐश्वर्य वैभव व सकल पदार्थ प्राप्त होता है। उसके लिए घर में कोई स्थान नहीं होगा तो व्यक्ति को देव ऋण से पीड़ित होना पड़ेगा। नई पीढ़ी की विचारधारा में परिवर्तन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर आस्था रही है और न ही लोग भगवान को मानते हैं। फलस्वरूप ईश्वर भी अपनी अदृश्य शक्ति से उन्हें नाना प्रकार के कष्ट प्रदान करते हैं।

ऋषि ऋण के विषय में भी लिखना आवश्यक है। जिस ऋषि के गोत्र में हम जन्में हैं, उसी का तर्पण करने से हम वंचित हो जाते हैं। हम लोग अपने गोत्र को भूल चुके हैं। अतः हमारे पूर्वजों की इतनी उपेक्षा से उनका श्राप हमें पीढ़ी दर पीढ़ी परेशान करेगा। इसमें कतई संदेह नहीं करना चाहिए। जो लोग इन ऋणों से मुक्त होने के लिए उपाय करते हैं, वे प्रायः अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो जाते हैं। परिवार में ऋण नहीं है, रोग नहीं है, गृह क्लेश नहीं है, पत्नी-पति के विचारों में सामंजस्य व एकरूपता है संताने माता-पिता का सम्मान करती हैं। परिवार के सभी लोग परस्पर मिल जुल कर प्रेम से रहते हैं। अपने सुख-दुख बांटते हैं। अपने अनुभव एक-दूसरे को बताते हैं। ऐसा परिवार ही सुखी परिवार होता है। दूसरी ओर, कोई-कोई परिवार तो इतना शापित होता है कि उसके मनहूस परिवार की संज्ञा दी जाती है। सारे के सारे सदस्य तीर्थ यात्रा पर जाते हैं अथवा कहीं सैर सपाटे पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं और गाड़ी की दुर्घटना में सभी एक साथ मृत्यु को प्राप्त करते हैं। पीछे बच जाता है परिवार का कोई एक सदस्य समस्त जीवन उनका शोक मनाने के लिए। इस प्रकार पूरा का पूरा वंश ही शापित होता है। इस प्रकार के लोग कारण तलाशते हैं। जब सुखी थे तब न जाने किस-किस का हिस्सा हड़प लिया था। किस की संपत्ति पर अधिकार जमा लिया था। किसी निर्धन कमजोर पड़ोसी को दुख दिया था अथवा अपने वृद्धि माता-पिता की अवहेलना और दुर्दशा भी की और उसकी आत्मा से आह निकलती रही कि जा तेरा वंश ही समाप्त हो जाए। कोई पानी देने वाला भी न रहे तेरे वंश में। अतएव अपने सुखी जीवन में भी मनुष्य को डर कर चलना चाहिए। मनुष्य को पितृ ऋण उतारने का सतत प्रयास करना चाहिए। जिस परिवार में कोई दुखी होकर आत्महत्या करता है या उसे आत्महत्या के लिए विवश किया जाता है तो इस परिवार का बाद में क्या हाल होगा? इस पर विचार करें। आत्महत्या करना सरल नहीं है, अपने जीवन को कोई यूं ही तो नहीं मिटा देता, उसकी आत्मा तो वहीं भटकेगी। वह आप को कैसे चैन से सोने देगी, थोड़ा विचार करें। किसी कन्या का अथवा स्त्री का बलात्कार किया जाए तो वह आप को श्राप क्यों न देगी, इस पर विचार करें। वह यदि आत्महत्या करती है, तो कसूर किसका है। उसकी आत्मा पूरे वंश को श्राप देगी। सीधी आत्मा के श्राप से बचना सहज नहीं है। आपके वंश को इसे भुगतना ही पड़ेगा, यही प्रेत बाधा दोष व यही पितृ दोष है। इसे समझें। अधिक जानकारी के लिए  सम्पर्क करे
गयाजी तीर्थ पुरोहित
आचार्य प्रवीण पाठक   9661441389
9905567875

Saturday 20 May 2017

पितृ दोष के कारण


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*पितृ दोष के लक्ष् ण*
आइए आज हम जानते हैं क्यों हमारे घर में सब कुछ होते हुए हम चीजों से सुख नहीं ले पाते यह में सुख शांति नसीब नहीं हो पाते जो कुछ भी हमारे पास है आइए उन कारणों को जानते हैं और दूर करें ताकि हम अपनी जिंदगी को सुखपूर्वक जी सकें

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१🌹घर में पितृ दोष होगा तो घर के बच्चे की शिक्षा , दिमाग , बाल ,व्यवहार पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता ।

२🌹जिन जातकों को पितृ दोष होता है उनके लिए इस दिन का बहुत महत्व है , बहुत से कारण होते है की हमारे अपने पितरों से सम्बन्ध अच्छे नहीं हो पाते , कारण , आपके जीवन में रुकावटें , परेशानियाँ और क्या नहीं होता । इसीलिए इस दिन की गयी पूजा आपको लाभ पंहुचा सकती है ।

३🌹पितृ दोष कही न कही अनेको दोषों को उत्पन्न करने वाला होता है जैसे की वंश न बढ़ने का दोष , असफलता मिलने का दोष , बाधा दोष और भी बहुत कुछ । तो इन दिनों में की गयी पूजा और तर्पण अगर विधि विधान और मन लगाकर किया जाए तो अच्छे फल देने वाली सिद्ध होती है ।

४🌹बालो पर सबसे पहले प्रभाव पड़ता है , जैसे की , समय से पहले बालों का सफ़ेद हो जाना , सिर के बीच के हिस्से से बालों का कम होना , हर कार्य में नाकामी हाथ लगाना , घर में हमेशा कलह रहना ,बीमारी घर के सदस्यों को चाहे छोटी हो या बड़ी घेरे रखती है , यह सब लक्षण पितृ दोष घर में है इसको बताते है । और अगर घर में पितृ दोष है तो किसी भी सदस्य को सफलता आसानी से हाथ नहीं लगती ।

५🌹पितृ दोष कुंडली में है अगर , तो कुंडली के अच्छे गृह उतना अच्छा फल जितना उन्हें देना चाहिए ।

६🌹घर के सभी लोग आपस में झगड़ते है , घर के बच्चों के विवाह देरी से होते है , और काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है विवाह करने में , घर में धन ना के बराबर रुकेगा अगर पितृ दोष हावी है तो ,बीमारी या फिर क़र्ज़ देने में धन चला जायेगा जुडा हुआ धन , पुरानी चीजे ठीक कराने में धन निकल जायेगा पर रकेगा नहीं ।

७🌹परिवार की मान और प्रतिष्ठा में गिरावट आती है , पितृ दोष के कारण घर में पेड़-पौधे या फिर जानवर नहीं पनप पाते । घर में शाम आते आते अजीब सा सूनापन हो जायेगा जैसे की उदासी भरा माहौल, घर का कोई हिसा बनते बनते रह जायेगा या फिर बने हुए हिस्से में टूट-फुट होगी , उस हिस्से में दरारे आ जाती है ।

८🌹घर का मुखिया बीमार रहता है , रसोई घर के अस - पास वाली दीवारों में दरार आ जाते है । जिस घर में पितृ दोष हावी होता है उस घर से कभी भी मेहमान संतुष्ट होकर नहीं जायेंगे चाहे आप कुछ भी क्यूँ न कर ले या फिर कितनी ही खातिरदारी कर ले , मेहमान हमेशा नुक्स निकाल कर रख देंगे यानी की मोटे तौर पर आपकी इज्ज़त नहीं करेंगे ।

९🌹घर में चीजे और साधन होते हुए भी घर के लोग खुश नहीं रहते । जब पैसे की जरुरत पड़ती है तो पैसा मिल नहीं पाता । ऐसे घर के बच्चों को उनकी नौकरी या फिर कारोबार में स्थायित्व लम्बे समय बाद ही हो पाता है , बच्चा तेज़ होते हुए भी कुछ जल्दी से हासिल नहीं कर पायेगा ऐसी परिस्थितियाँ हो जायेंगी

१०🌹जिस घर में पितृ दोष होता है उस घर में भाई-बहन में मन-मुटाव रहता ही रहता है , कभी कभी तो परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती है की कोई एक दूसरे की शकल तक देखना पसंद नहीं करता । पति-पानी में बिना बात के झगडा होना भी ऐसे घर में स्वाभाविक है जिस घर में पितृ दोष हो । पोस्ट बाय कृष्ण कुमार डाबर

११🌹ऐसे घर के लोग जब एक दूसरे के साथ रहेंगे तो हमेशा कलेश करके रखेंगे परन्तु जैसे ही एक दुसरे से दूर जायेंगे तो प्रेम से बात करेंगे ।

१२🌹घर में स्त्रियों के साथ दुराचार करना , उन्हें नीचा दिखाना , उनका सम्मान न करने से शुक्र गृह बहुत बुरा फल देता है जिसका असर आने वाली चार पीड़ियों तक रहता है । तो शुक्र गृह भी पित्र दोष लगाता है कुंडली में ।

१३🌹जिस घर में जानवरों के साथ बुरा सुलूक किया जाता है उस घर में पितृ दोष आना स्वाभाविक है । और जो जानवरों के साथ बुरा सुलूक करते है वह ही नहीं अपितु उनका पूरा परिवार और उनकी संतान पर पितृ दोष के बुरे प्रभाव के हिस्सेदार जाने-अनजाने में बन जाते है ।

१४🌹जिस घर में विनम्र रहने वाले व्यक्ति का अपमान होता है वह घर पितृ दोष से पीड़ित होगा , साथ में जो लोग कमजोर व्यक्ति का अपमान करेंगे वह भी पितृ दोष से प्रभावित होंगे ।

१५🌹जमीन हथियाने से , हत्या करने से पित्र दोष लगेगा ।

१६🌹जो लोग समाज-विरॊधि काम काम करेंगे उनका बृहस्पति खराब होकर उनकी कई पीड़ियों तक पितृ दोष देता रहता है ।

१७🌹बुजुर्गों का अपमान जहा हुआ वह समझिये पितृ दोष आया ही आया ।

१८🌹सीड़ियों के निचे रसोई या फिर सामान इक्कठा करने का स्टोर बनाने से पितृ दोष लगता है ।

१९🌹मित्र या प्रेमी को दोख देने से पितृ दोष लगता है , शेर-मुखी घर में रहने वाले लोगो को पितृ दोष के दुष्प्रभाव झेलने पड़ते है । {शेर-मुखी ऐसा घर होता है जो शुरू शुरू में चौड़ा होता है परन्तु जैसे जैसे आप घर के अंदर जाते जायेंगे वह पतला होता चला जाता है }.    गया जी तीर्थ पुरोहित
ज्योर्तिविद पं० प्रवीण पाठक.  
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