Friday 31 March 2017

पितृदोष का वास्तु दोष से सम्बन्ध


पितृदोष क्या है और इसका वास्तु से क्या संबंध है ? :-
क्यों पितृ दोष के उपाय करने के बाद भी परेशानियां कम नहीं होती ?

पितृदोष क्या है और इसका वास्तु से क्या संबंध है ? :-
इस लेख में मै आपको बताऊंगा की जन्म कुंडली में पितृदोष होने के बाद हमारे घर में वास्तु दोष कहां उत्पन होता है, और कैसे इस वास्तु दोष को हटाकर हम पितृदोष के प्रभावों को 90% तक कम कर सकते हैं ?
सबसे पहले हम यह जानेंगे की पित्रदोष बनता कैसे हैं ? :-

सूर्य हमारे पितृ है, और जब राहु की छाया सूर्य पर पड़ता है (तब सूर्य यानि की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव काम हो जाता है ) यानि की जब राहू सूर्य के साथ बैठा हो , या राहु पंचम भाव में हो , या सूर्य राहु के नक्षत्र में हो , या पंचम भाव का उप नक्ष्त्र स्वामी राहु के नक्षत्र में हो तब ऐसी परिस्थिति में पितृदोष उत्पन होता है |

ऐसा माना जाता है कि परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है और उनका सही तरीके से पिन्डदान  न किया गया हो तब उस परिवार में जन्म लेने वाले संतान में पितृ दोष आ जाता है ( खासकर पुत्र संतान मै ) जिसकी वजह से उन्हें अपने जीवन में काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है |

जिस व्यक्ति के जन्म कुंडली में है पूर्ण पितृदोष होता है उन्हें पुत्र संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता है |
आपने ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो कि मेडीकल के अनुसार स्वस्थ होते हैं लेकिन फिर भी संतान की प्राप्ति नहीं होती और डॉक्टर बताते हैं कि मेडिकल से उन्हें कोई परेशानी नहीं है फिर भी उन्हें संतान का सुख नहीं मिल पाता या कई लोगों के सिर्फ पुत्री ही होती हैं पुत्र धन की प्राप्ति नहीं हो पाता |

ऐसी परिस्थिति में उनकी कुंडली में पितृदोष जरूर होता है और उनके घर में ईशान कोण या नैत्रत्य कोण में शौचालय जरूर होता है |

कई बार पितृ दोष का प्रभाव इतना बढ़ जाता है व्यक्ति का सारा जमीन जायदाद एवं संपत्ति तक बिक जाता है और वह नई संपत्ति खरीद भी नहीं पाता|

आपने ऐसे कई लोगों को ऐसे देखा होगा या सुना होगा जो बहुत बड़े जमींदार होते थे उनके पास बहुत ज्यादा पैसा होता था लेकिन आज उनके पास कुछ भी नहीं है यहाँ तक की अपना घर तक नहीं है इसका मुख्य कारन पितृदोष होता है |

अब हम यह जानेंगे की पितृदोष का वास्तु से क्या सम्बन्ध है, :-

घर में पितृ का स्थान दक्षिण और पश्चिम का कोना है यानी कि नैत्रत्य कोण है । जन्म कुंडली में जब भी पूर्ण पितृदोष बनता है यानी की राहु (जो की नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत्र है ) मजबूत हो जाता है, और जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में नकारात्मक उर्जा मजबूत होता है उस घर में भी उसका प्रभाव देखने को मिलता है

घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ईशान कौन से होता है और नकारात्मक उर्जा का प्रवाह नैत्रत्य कोण से होता है , जब जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है यानी कि राहु मजबूत होता है ऐसी परिस्थिति में वह व्यक्ति जिस घर में रहता है उस घर के नैत्रत्य कोण में वास्तु दोष जरूर होता है

नैत्रत्य कोण के मुख्यतः वास्तु दोष निम्नलिखित हैं :-
नैत्रत्य कोण में शौचालय का होना , डस्टबिन का होना , नाली का होना , दक्षिण पश्चिम में गंदगी होना (जो की राहु की नकारात्मक उर्जा को 100 गुना बढ़ा देता है ),
दक्षिण पश्चिम में पृथ्वी की उर्जा होती है अगर यहां पर पेड़ - पौधे रखे हों या दीवार का रंग हरा हो तो भी पृथ्वी की उर्जा समाप्त हो जाती है जिससे भी यहाँ पर वास्तुदोष पैदा होते हैं ।

वैवाहिक जीवन पर प्रभाव :-

घर में नैत्रत्य कोण रिश्ते का स्थान भी है , और अगर यहां पर वास्तु दोष होता है तो वैवाहिक जीवन में बहुत सारी परेशानियां आती हैं यहां तक कि कई बार बात तलाक तक पहुंच जाती है और जिसका कोई खास वजह नहीं होता , अगर किसी व्यक्ति के घर में आपसी रिश्ते खराब हो और बिना किसी कारन के बार-बार झगड़े होते हैं तो नैत्रत्य कोण में वास्तु दोष जरूर होगा ।
—इन दोषो से परिहार के लिए गया जी मे पिन्डदान या श्राद्ध अवश्य कराये अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे
आचार्य प्रवीण पाठक

9661441389
9905567875

Wednesday 22 March 2017

क्यो गया जी मे हर व्यक्ति करना चाहता है पिन्डदान

गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।
इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यकित की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं।

गया के प्रति लोगों के मन जो आस्था मौजूद है वह यूं ही नहीं है। गया के बारे में आप भी अगर गहराई से जानेंगे और इसके अतीत में जाएंगे तो आपके सामने गया के कई ऐसे राज खुलेंगे जो आपको हैरत में डाल देंगे और आप लोक परलोक के ऐसे सवालों में उलझ जाएंगे जिसका जवाब सिर्फ और सिर्फ गया में ही मिल सकता है।

क्यों गया में हर व्यक्ति चाहता है पिंडदान

गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण में कहा गया है ‘
  
गयाश्राद्धात् प्रमुच्यन्त पितरो भवसागरात्। गदाधरानुग्रहेण ते यान्ति परामां गतिम्।।

यानी गया श्राद्ध करने मात्र से पितर यानी परिवार में जिनकी मृत्यु हो चुकी है वह संसार सागर से मुक्त होकर गदाधर यानी भगवान विष्णु की कृपा से उत्तम लोक में जाते हैं।

वायु पुराण में बताया गया है कि मीन, मेष, कन्या एवं कुंभ राशि में जब सूर्य होता है उस समय गया में पिण्ड दान करना बहुत ही उत्तम फलदायी होता है। इसी तरह मकर संक्रांति और ग्रहण के समय जो श्राद्ध और पिण्डदान किया जाता है वह श्राद्ध करने वाले और मृत व्यक्ति दोनों के लिए ही कल्याणी और उत्तम लोकों में स्थान दिलाने वाला होता है।

गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण यह भी कहता है कि यहां पिण्डदान करने मात्र से व्यक्ति की सात पीढ़ी और एक सौ कुल का उद्धार हो जाता है। गया तीर्थ के महत्व को भगवान राम ने भी स्वीकार किया है।

गया में है देवी सीता का शाप (जब सीता ने किया पिण्डदान)

वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी। अपराहन में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।

थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा। तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। इतने में फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।

दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी- जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढाया जाएगा। वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।
    

Wednesday 15 March 2017

अमावास्या के दिन पितरो का आशिर्वाद


मृत्यु के पश्चात आत्मा की तीन स्थितियां बताई गई हैं. पहला अधोगति यानी भूत-प्रेत, पिशाच आदि योनि में जन्म लेना. दूसरा स्वर्ग प्राप्ति और तीसरा मोक्ष. गरुण पुराण में उल्लेख है कि इसके अलावा भी जीव को एक ऐसी गति भी मिलती है, जिसमें उसे भटकना पड़ता है. इसे प्रतीक्षा काल कहा जाता है. इन्हीं भटकी हुई आत्माओं की मुक्ति के लिए पितरों का तर्पण किया जाता है. श्रद्धावान होकर पुरखों की अधोगति से मुक्ति के लिए किया गया धार्मिक कृत्य श्राद्ध कहलाता है. पितरों के मोक्ष के लिए ही राजा भगीरथ ने कठोर तप किया और गंगा जी को पृथ्वी में लाकर उनको मुक्ति दिलाई.

बारह आदित्य (अदिति के पुत्र) दत्त, मित्र, आर्यमा, रुद्र, वरुण, सूर्य, भाग, विश्वन्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु हैं। ग्यारह रुद्र मन्यु, मनु, महिनसन, मदन, शिवन, ऋतुध्वज, उग्ररेतस, भवन, कामन, वामदेव और द्रुतव्रतन हैं। दक्ष की पुत्री वसु के ये आठ पुत्र हैं : धरण, ध्रुव, सोम, अहास, अनिल, अनलन, प्रात्युष्ण और प्रभासन।

इनमे से आर्यमा को पितृ मान कर आहुति दे जाती है और माना जाता है इससे पित्रों को तृप्ति व मुक्ति मिलती है।

वैसे यह मानसिक जप व हवन होता है  किन्तु काले तिल,अक्षत व अन्य हवन सामग्री से हवन कर 108 आहुती दी जा सकती है ।पीपल के वृक्ष को  जल चढाये तथा “ ॐ श्री पित्रदेवाय नमः “ का जप करें ।

* सबसे पहले भूलकर भी किसी का अपमान ना करें (वैसे करना भी नहीं चाहिए), ब्रहमचर्य का पालन करे,  इर्ष्या ,क्रोध और बुरे विचार मन में नहीं आने चाहिये।

* पित्र देवो के आशीर्वाद के लिए सबसे अच्छा श्री गीता जी का पाठ होता है, और गया जी जाकर अपने पितर के निमित्त पिन्डदान करने से होता है  किसी योग्य ब्राहमण-पंडित से करवाया जाए। पाठ या पिन्डदान ये कह कर रखवाया जाता है, कि " हमारे पित्र देव जहा कही भी हो और जिस भी योनी में हो… उन्हें वहा पर शांति प्रदान हो और उनका आशीर्वाद हमारे पूरे परिवार को मिले  गीता पाठ और पिन्डदान का जो भी पुण्य फल है वो हमारे पित्र देवो को मिले…. "

फिर अमावस्या को इस पाठ का हवन के साथ समापन होता है।  ब्राहमण देव जी को यथा शक्ति कपडे दिए जाते है… जो पित्र देवो के नाम से होते है…. यथा शक्ति भोजन और दक्षिणा के साथ उनको विदाई दी जाती है…. यह पाठ ३ दिन या ५ ।

Wednesday 8 March 2017

श्राद्ध सम्बन्धी 26 प्रकार के विशेष ज्ञान इसे जरूर जाने नही तो आप पितृ दोष से मुक्त नही हो सकते


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🌺धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।

मगर गया जी मे तिथियो का महत्व नही है आप कभी भी किसी मास मे भी अाप अपने पितर के निमित्त पिंडदान या गया श्राद्ध कर सकते है एसा शास्त्रो मे कहा गया है गया जी छोड़ कर बताये जा रहे नियम सभी जगह पालन करना होगा

पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।
   
🌺श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
🌸श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-

🖼1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

🌈2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

🖼3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

🌈4- ब्राह्मण को भोजन 'मौन रहकर' एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें !

🖼5- जो पितृ , शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पहने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।
 
🌈6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

🖼7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।

🌈8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है। क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है।

🖼9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

🌈10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भाऩजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

🖼11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याच़क को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

🌈12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

🖼13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

🌈14- जैसे कि रात्रि को राक्षसी समय माना गया है, रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।वैसे हि दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

🖼15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

🌈16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

🖼17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

🌈18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

🖼19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य,
2- नैमित्तिक,
3- काम्य,
4- वृद्धि,
5- सपिण्डन,
6- पार्वण,
7- गोष्ठी,
8- शुद्धर्थ,
9- कर्मांग,
10- दैविक,
11- यात्रार्थ,
12- पुष्टयर्थ

🌈20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-
➖तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
➖भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।
वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
➖दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

🖼21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

🌈22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

🖼23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

🌈24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

🖼25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

🌈26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों( एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है

🖼पितृ पक्ष पन्द्रह दिन की समयावधि होती है जिसमें हिन्दू जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं।

🌈दक्षिणी भारतीय अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद के चन्द्र मास में पड़ता है और पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के एक दिन बाद प्रारम्भ होता है।
🖼उत्तरी भारतीय पूर्णीमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन के चन्द्र मास में पड़ता है और भाद्रपद में पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के अगले दिन प्रारम्भ होता है।

गया जी मे पितृ दोष परिहार के लिए  सम्पर्क  करे
✍  गया जी पन्डित
आचार्य प्रवीण पाठक  9661441389.  9905567875

Tuesday 7 March 2017

पितर कौन होते है और उनका महत्व


संसार के समस्त धर्मों में कहा गया है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है वरन वह किसी ना किसी रूप में बना ही रहता हे। जैसे मनुष्य कपड़ों को समय समय पर बदलते रहते है उसी तरह जीव को भी शरीर बदलने पड़ते है जिस प्रकार तमाम जीवन भर एक ही कपड़ा नहीं पहना जा सकता है उसी प्रकार आत्मा अनन्त समय तक एक ही शरीर में नही ठहर सकती है।

ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपः

ऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।

गीता.2ए अध्याय.20

अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है।

व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है।

Monday 6 March 2017

महापितृ बाधा के दोष लछण

जिस तरह कई घटनाये हमे विचलित कर देती हैं और हमारे मन में भय समां जाता है और ऐसे में हम यक़ीन नहीं कर पाते कि आत्माओं का वजूद असल में है भी या नहीं. जिस तरह भिन्न-भिन्न चीजों के अलग-अलग संकेत होते है, ठीक उसी तरह हमारे पूर्वज या परिवार अकाल मृत्यु या किसी भी कारण से अकाल मृत्यु ग्रस्त हो जाने पर वह प्रेत योनि मे चले जाते है और बराबर हमारे साथ रह कर संकेत देते रहते है । प्रेत आत्माओं के मौजूद होने के भी कई संकेत होते है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर इन संकेतों में से अगर आपको कोई भी संकेत का अहसास हो तो सावधान हो जाएँ।

1. अजीबोगरीब आवाजे सुनाई देना: अगर आपको अजीबोगरीब जैसे कि किसी के चलने की, खुरचने की़, पायल की़, दरवाजा खटकाने की, कुछ गिरने की आदि आवाज़ें सुनाई दे, तो ये संकेत गलत हैं।

2. अचानक इत्र या परफ्यूम की खुशबू आना: घर में किसी ने भी इत्र, परफ्यूम या खूशबू जैसी कोई भी चीज नहीं लगाई हो और उसके बावजूद अचानक ऐसी ही खुशबू आये, तो हो सकता है कोई प्रेत आत्मा आपके पास से गुजरी हो।

3. परछायीं का दिखना: आपको घर में कभी अजीब सी परछायीं दिखाई दे, तो पहले इसकी पुष्टि कर ले की ये किसकी है। अन्यथा सावधान रहने की जरूरत है।

4. जब अचानक तेजी से बंद हो दरवाजा: घर में अगर कोई ऐसा कमरा है, जिसके दरवाजे को हलका सा पुश करने से वह तेजी से बंद हो जाता हो तो ये संकेत भी अच्छा नहीं है। हो सकता है वहां कोई अदृश्य शक्ति का वास हो।

5. दीवारों पर खुर्चन या धब्बे: अगर घर की दीवार पर आपको खुर्चन या धब्बे दिखाई दें, तो ये भी गलत संकेत हो सकते हैं।

6. अपने स्थान पर न मिलें चीजें: अगर आप चीजों को संभाल कर रखते हैं, लेकिन फिर भी वे चीजें अपने स्थान पर नहीं मिलती हैं। और ऐसा बार-बार हो रहा है, तो जरूर कोई गड़बड़ है।

7. कोई बिस्तर पर बैठा हो: अचानक से आपको कभी लगे कि आपके खाली बेड पर कोई बैठा या लेटा है। और अगले ही पल में वो गायब सा हो जाता है, तो हो जाए सावधान।

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8. कोई पीछा कर रहा हो: अगर आपको बार- बार महूसस हो रहा हो कि कोई ना कोई आपका पीछा कर रहा है, तो सर्तक हो जाए। ये कोई प्रेत आत्मा हो सकती है।

9. किसी चीज का अचानक गायब होना: कोई चीज अचानक गायब हो जाए और फिर से आंखों के सामने आ जाए। तो ऐसी चीजे संभाल कर रखें, क्योंकि हो सकता है ये चीजें किसी अदृश्य शक्ति की पसंदीदा हो गई हो।

10. रोने और सिसकियों की आवाजें: अचानक किसी के रोने की या सिसकियां लेने की आवाज आये, लेकिन देखने पर आवाज वाली जगह कोई नहीं हो, तो सावधान हो जाए।

11. जैसे किसी ने छुआ हो: अगर अचानक लगे कि आपको किसी ने छुआ है। तो कोई न कोई गड़बड़ है।

12. घर में कुत्ता-बिल्ली का व्यवहार अजीब लगे: अगर घर में मौजूद जानवर जैसे कुत्ता या बिल्ली अचानक से अजीब सा व्यवहार करने लगे या फिर अजीब-अजीब आवाज़ें निकालें, तो सावधान हो जाएँ।

13 रोग ग्रस्त हो जाना और ठीक न हो पाना . दवा काम नही करना   हाथ पैर हमेशा कापते रहना

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