Wednesday 15 March 2017

अमावास्या के दिन पितरो का आशिर्वाद


मृत्यु के पश्चात आत्मा की तीन स्थितियां बताई गई हैं. पहला अधोगति यानी भूत-प्रेत, पिशाच आदि योनि में जन्म लेना. दूसरा स्वर्ग प्राप्ति और तीसरा मोक्ष. गरुण पुराण में उल्लेख है कि इसके अलावा भी जीव को एक ऐसी गति भी मिलती है, जिसमें उसे भटकना पड़ता है. इसे प्रतीक्षा काल कहा जाता है. इन्हीं भटकी हुई आत्माओं की मुक्ति के लिए पितरों का तर्पण किया जाता है. श्रद्धावान होकर पुरखों की अधोगति से मुक्ति के लिए किया गया धार्मिक कृत्य श्राद्ध कहलाता है. पितरों के मोक्ष के लिए ही राजा भगीरथ ने कठोर तप किया और गंगा जी को पृथ्वी में लाकर उनको मुक्ति दिलाई.

बारह आदित्य (अदिति के पुत्र) दत्त, मित्र, आर्यमा, रुद्र, वरुण, सूर्य, भाग, विश्वन्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु हैं। ग्यारह रुद्र मन्यु, मनु, महिनसन, मदन, शिवन, ऋतुध्वज, उग्ररेतस, भवन, कामन, वामदेव और द्रुतव्रतन हैं। दक्ष की पुत्री वसु के ये आठ पुत्र हैं : धरण, ध्रुव, सोम, अहास, अनिल, अनलन, प्रात्युष्ण और प्रभासन।

इनमे से आर्यमा को पितृ मान कर आहुति दे जाती है और माना जाता है इससे पित्रों को तृप्ति व मुक्ति मिलती है।

वैसे यह मानसिक जप व हवन होता है  किन्तु काले तिल,अक्षत व अन्य हवन सामग्री से हवन कर 108 आहुती दी जा सकती है ।पीपल के वृक्ष को  जल चढाये तथा “ ॐ श्री पित्रदेवाय नमः “ का जप करें ।

* सबसे पहले भूलकर भी किसी का अपमान ना करें (वैसे करना भी नहीं चाहिए), ब्रहमचर्य का पालन करे,  इर्ष्या ,क्रोध और बुरे विचार मन में नहीं आने चाहिये।

* पित्र देवो के आशीर्वाद के लिए सबसे अच्छा श्री गीता जी का पाठ होता है, और गया जी जाकर अपने पितर के निमित्त पिन्डदान करने से होता है  किसी योग्य ब्राहमण-पंडित से करवाया जाए। पाठ या पिन्डदान ये कह कर रखवाया जाता है, कि " हमारे पित्र देव जहा कही भी हो और जिस भी योनी में हो… उन्हें वहा पर शांति प्रदान हो और उनका आशीर्वाद हमारे पूरे परिवार को मिले  गीता पाठ और पिन्डदान का जो भी पुण्य फल है वो हमारे पित्र देवो को मिले…. "

फिर अमावस्या को इस पाठ का हवन के साथ समापन होता है।  ब्राहमण देव जी को यथा शक्ति कपडे दिए जाते है… जो पित्र देवो के नाम से होते है…. यथा शक्ति भोजन और दक्षिणा के साथ उनको विदाई दी जाती है…. यह पाठ ३ दिन या ५ ।

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