Saturday 5 September 2020

।।#श्राद्ध_में_सावधानी।। ।।२।।श्राद्ध पक्ष में एक बार तीर्थ पर अवश्य जाएं ।क्योंकि नरक में स्थित पितरों के लिए तीर्थ की जलांजलि बहुत ही दुर्लभ है। उससे तृप्त होकर पितर मुक्त हो जाते हैं--#पितृणां नरकस्थानां जलं तीर्थस्य दुर्लभं।तेन संतर्पिता: सर्वे स्वर्गं यान्ति मद्वच:।।प्रजा० स्मृतीर्थ पर ब्राह्मण की परीक्षा न करें।जो भी भोजनार्थी हो उसे भोजन करा दें--#तीर्थेषु ब्राह्मणं नैव परीक्षयेत् कथञ्चन्।अन्नार्थिमनुप्राप्तं भोजयेननुशासनात्।।प. पु०तीर्थ पर कुतुप काल की प्रतीक्षा न करें। वहां जाते ही श्राद्ध आदि करें-#तीर्थश्राद्धे कुतुपादि कालं न प्रतीक्षेत्। हारीत०पूजा/श्राद्धादि में नाभि से नीचे का भाग स्पर्श न करें--#कर्मयुक्तो नरो नाभेरध: स्पर्शं विवर्जयेत्। बोधा०अमावस्या श्राद्ध,गयाश्राद्ध,और तिलों से तर्पण में तीन काम जिसके पिता जीवित हों वे न करें। पिता को ही अधिकार है। पिता यदि असक्षम हैं तो उनकी आज्ञा से प्रतिनिधि के रूप में कर सकते हैं---#दर्शश्राद्धं गयाश्राद्धं तिलैर्तर्पणमेव च।न जीवितपितृको कुर्यात् कृत्वाधर्ममाप्नुयात।वह्नि पु०श्राद्ध में जिसका श्राद्ध है उसके निमित्त भोजन के लिए यदि भानजा मिले तो दस ब्राह्मणों से श्रेष्ठ है ,दोहिता सौ ब्राह्मणों से श्रेष्ठ है।जीजा हजार ब्राह्मणों से श्रेष्ठ बताया गया है। और जमाई सबसे श्रेष्ठ बताया गया है।अतः इनको भोजन,वस्त्र आदि देने में प्राथमिकता दें--#भागिनेयो दशविप्रेण दौहित्र शतमुच्यते।भगिनीभर्ता सहस्रैषु अनन्तं दुहितापति:।व्याघ्र० स्मृयदि भाई इकट्ठे रहते हों तो मिलकर ज्येष्ठ भाई के हाथ से श्राद्धादि करें।यदि अलग-अलग हों तो अलग-अलग ही श्राद्ध करें--#भ्रातृणामविभक्तानां एक: धर्म प्रवर्तते।विभागे सति धर्मोपि भवेत्तेषां पृथक् पृथक्।नारद०भोजन,हवन,दान, उपहार तथा वस्तु लेना , आचमन करना ,इनमें हाथ घुटनों के बाहर न करके कार्य करें--#भोजनं हवनं दानं उपहार: परिग्रह:।बहिर्जानु न कार्याणि तद्वदाचमनं स्मृतम्।बोधा०पेठा, भैंस का दूध, बेलपत्र और मगद्विज(पर्वतीय ब्राह्मण विशेष)इनके होने से पितर निराश होकर चले जाते हैं--#कुष्मांडं महिषीक्षीरं बिल्वपत्रमगद्विजा:।श्राद्धकाले समुत्पन्ने पितरो यान्ति निराश्रया:।कृत्यसारभोजन के दौरान नमक,घी, भोजन सामग्री बर्तन में ही दें, हाथ से नहीं--#हस्तदत्तं तु यत्स्नेहं लवणं व्यंजनादिकम्।दातुश्च नोपतिष्ठेत् भोक्ता भुंजीत किल्विषम्।दाल०सफेद तिलों का प्रयोग श्राद्ध में न करें-#अकृष्णतिलैर्मोहात्तर्पयेत्--प० पु० #आपत्ति काल में,ग्रहणादि में ,सूतक पातक में ब्राह्मणादि को कच्चे अन्न से श्राद्ध करना चाहिए अर्थात् कच्ची अन्न सामग्री दान करें।शूद्र सर्वदा कच्चा अन्न आदि से ही श्राद्ध करे--#आपद्यनाग्नौ तीर्थे च चंद्रसूर्यग्रहे तथा।आमश्राद्धं द्विजै: कार्यं शूद्रेण तु सदैव हि।। श्राद्ध वि०सधवा स्त्रियां काले तिल/कुशा का स्पर्श न करें --#न स्पृशेत्तिलं दर्भाश्च सधवा तु कदाचन्।कृत्य०ब्राह्मण पितृ तर्पण के बाद तथा क्षत्रियादि पितृ तर्पण से पहले भीष्म तर्पण करें--#ब्राह्मण: पितृतर्पणानन्तरं क्षत्रियादय: प्रथममेव भीष्मतर्पणं कुर्युरिति सदाचार:।(इत्यादि बहुत से नियम मेरी अद्वितीय कृति #कर्मकांडमीमांसा ग्रंथ से उद्धृत हैं)गयाजी तीर्थपुरोहित आचार्य प्रवीण पाठक पितृदोष निवारण .पिंडदान. तर्पण त्रिपिंडि श्राद्ध नारायण बली पूजा के लिए संपर्क करे 9661441389 //9905567875

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