Sunday 23 September 2018

★ पितृ पक्ष - गया श्राद्ध-मे विशेष. 2018* •• जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती उनके लिये भी श्राद्ध-पक्ष में कुछ विशेष तिथियाँ निर्धारित की गई हैं । उन तिथियों पर वे लोग पितरों के निमित श्राद्ध कर सकते है । 1. प्रतिपदा : इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है । इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है । यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं । 2. पंचमी : जिन लोगों की मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिये । 3. नवमी : सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है । यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है । इसलिए इसे मातृ-नवमी भी कहते हैं । मान्यता है कि - इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है । 4. एकादशी और द्वादशी : एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं । अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो । 5. चतुर्दशी : इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है । जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है । 6. सर्वपितृमोक्ष अमावस्या : किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गये हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है । तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है । •• शास्त्र अनुसार - इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है । यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिये । 7. बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिये - यही उचित भी है । •• पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें । जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं । •• विशेष: श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिये । यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है -- •• देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।। - वायु पुराण । •• श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है । •• ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊर्ध्व कक्षा में पितर लोक है जहां पितर रहते हैं । •• पितर लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता । जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं । •• यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है । स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है । •• हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता । मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है। •• श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है । इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है । •• ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जो भोजन खिलाया जाता है वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है। •• वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है । •• पितर लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है । •• सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शांति मिलती है। तभी वे हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं । •• श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाये तो अच्छा - क्योंकि पितर-लोक को दक्षिण दिशा में बताया गया है । •• इस अवसर पर तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए । गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है । •• जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें । श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें। •• पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाये तो अच्छा है । केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है । 🙏🙏🏿

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